मरूत सूक्तों का आलोचनात्मक अध्ययन | Maroot Sukton Ka Aalochanatmak Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तैटिक टेवताओं का वर्गीकरण ग्वेद मे धर्म का प्न विषय प्रकृति पृजा है अत्तरव ग्वेद संहिता में प्राकृतिक प्ञक्तियों को देवता के छप में स्वीकार किया गया है ।' वैदिक देवताओं का वर्गीकरण विभिन्न आध्र पर निम्नलिखित पकार से किया जा सक्ता है :- संख्या के आधार पर भ्रग्वेदट, यजुर्वेद” एवं अधथर्ववेट में देवताओं की संख्या 55 अथवा त्रिभि: एकादश कही गईं है । इती सख्या को अनेक स्थानों पर ग्यारह का तीन गुना के छूप मे तिरू- पित किया আয়া ই | अअग्वेद? के ही एक मन्त्रानुतार ॥ दैवता स्वर्ग में ॥ अन्तरिक्ष क्रे । जल ।० एवं ॥ देवता पृथ्वी पर हहेते हैं । जदो धधे वा जोध, शतिनो तिकि, अ शोनित भियेति भित जनीते शिः सिला = भोक्त नित मनति ममेमे ওজর ধারী |. आर्थर वेरपीडेल कीथ - १1० †२०।।५५१५ (५१८ १ [1 ( ८ ১০১৭ ০ 1৮60 ৮/৪৫৫৫1 ০৮৮৬৫ +[2! 5८९८७ डॉ0 सूर्यकानत । अनुवादक | वैदिक धर्मं ओर दर्शन, भाग 2, पृष्ठ 79. | नातं त्रच |. । | | 2. पत्नीवता क्रित त्रीपरचदेवाननुष्वध्मा वह मादयस्व । त्रण्त0 5/6,१. ४ | | নি पि 5. त्रयात्त्रिगतास्तुवत भूतान्यशा म्यन्‌ परजापति:परमेष्ठयधिमतिरासीत्‌ । यपजु0 ।५- 5। | লি | | ५. यस्य त्रयास्त्रिसदटेवा अडगे सर्वे समा हिता: । अथर्व0 10.7.15 | | | 5. ये देवास दिव्येकाद्प्रात्य पृयथिव्यागध्येकाटश स्थ अ्र0स0 ।. 139. । | | | = | &. अप्युषितो महिनेकादषा स्थते टैवास युग यिमं जुष्वम्‌ । न अ0सं0 ।. 139. । | 6. ए0क0 गैक्डछोनेन : वैदिक मादधालाजी मे शग्वेट के मत्र |. 139. ।। मे अप्तु हितः का अर्थं जल करते हैँ । ভা सूर्यकान्त ।अनुवादक। वैण्दे0 पृ0 36; राम्कुमार राय ।अनुवाटक। वै०पुर70 पू0 उठ.




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