सोनभद्र की आदिवासी जनजातियों की भाषा का अध्ययन | Sonabhadra Ki Aadiwasi Janajatiyon Ki Bhasha Ka Adhyayan

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Sonabhadra Ki Aadiwasi Janajatiyon Ki Bhasha Ka Adhyayan by संजय चतुर्वेदी - Sanjay Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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7 इन्हें नीम ऋषि कहा गया। भगवान शंकर रोज जगल में लकड़ी इकट्ठा करने जाया करते थे। जिनके वरदान से नीम ऋषि के वशज प्रसिद्ध हुए। कुक के अनुसार इस कथा का प्रचलन भूहियार व मुसहर में आज भी प्रसिद्ध है। 1 इस प्रजाति के शरीर रचना के संबंध में कर्नल डाल्टन की रिपोर्ट महत्वपूर्ण है। वे लिखते है - * इस जाति के लोग काले भूरे रंग के होते हैं। आनुपातिक रूप में यह जाति थोड़े चपटे चेहरे वाली होती है। लम्बाई मध्यम कद की, उगुलिया कठोर तथा पहाड़ी जाति के लोगों की तरह कठोर मांसपेशियो वाली। जहां तक मिर्जापुर एवं सोनभद्र मेँ इस जाति का संबंध है यह आठ कुलों में विभाजित है- 1 तिरवाह 2 मगहिया 3 दंदवार॒4 महतवार 5. महतेक 6 मुसहर 7 भूदृहार 8 भडयार 9117 31519) 55১5 - 09115 15 28 5/9111010৬7 01581770001 10215? 2 810192 0৬ 1705 2170 291700%2 07५ थी& 16 8100255 0 80172112170 16801]151 08801066 0४ ০0101910812 0510190 00 ভিলা ০8090011716 81012, 110170255 & 02005 10 118 बनि 116 01580100011 ৬71 05 1772305 501715 তা 05জাভা 1113 8১00121750 पीरा उज्ला 01021 8178195৬৮11 5 8 पाशान ग ০0052 0550110581177561 25 8170012, ৮8815 21118177061 01217100191 0109 %/11 011১ 00 50 1017915 581081110 01 17905161706 10 3 01015511011 0112817 0 0685165 9 501718 50902119250 00 124 50955 01115 31245 25 21217011010 01 ৪0701101115 इस जाति की अपनी एक जाति-पंचायत है, जो हयारी नाम से प्रसिद्ध है तथा इस पंचायत का अध्यक्ष पारिवारिक उत्तराधिकार के कम में एक व्यक्ति होता है, जिसे महतो कहते है। सामान्यतया खानपान जैसे प्रकरणों के लिए ही यह पंचायत बैठती है, या जब किसी सहजातीय के बीच में यौन संबंध की शिकायत पंचायत में कोई करता है। कुक का कहना है कि यह जाति विवाह के, लडकी ढूंढने कभी दूर नहीं जाती। इस सदर्भं मे इस नाति की सारी उपनातियां वैवाहिक सदर्भं मेँ समान स्तर की हैं। यदि कोई व्यक्ति एक से अधिक पत्नियों का भरण- पोषण कर सकता है और उसका मूल्य चुकाने में सक्षम है,तो वह पत्नियों रख सकता है जो एक ही घर में अलग - अलग कमरों में निवास करती है। 2 सोनभद्र के आज के समाज में यह विभेद संकीर्ण हो गये हैं तथा बहुपतनीत्व की प्रथा सामान्य नहीं है। इस जाति में तलाक, विधवा विवाह जैसी प्रथायें भी प्रचलित हे! पुत्र के जन्म के समय नार काटना, सउर, छठी, बरही जैसी प्रधायें इनमें स्थानीय सवर्णों की तरह आज प्रचलित है। विवाह के प्रकरण मेँ लडकी की खोज लडके का पिता करता है, जिसे जाति का प्रथान महतो अपने साथ कुछ लोगों को लिवा जाकर स्वीकृति प्रदान करता है। चौक पूरने की प्रथा इनमें भी है। विवाह तय होने पर अक्षत छिड़क कर उसे समर्थन दिया जाता है। विवाह के समय मटमंगरा, टीका, तेल - हरदी, पोखरी, मांगर जैसी लोक प्रथायें इस जाति में सामान्य हैं। विवाह में सिद्ध के पेड़ का मेंडप में होना आवश्यक है। भुद्दयाँ धार्मिक रूप 1 ায়955 & 09586 ০ 886 10 8551 2 - ००8, 0206 71, अ 2 1055 & 09569 01 फ्जात ४४2५ 12 - ০7005, 2509 74. 22011




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