सनाथ - अनाथ निर्णय | Sanath - Anath Nirnay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१ सनाथ-अनाथ निर्णय...
विरोषं अक्ति. भी नं थी । কহ নাহ वह जेंन-साधुओं को अप-
मानितं करने की असफल चेष्टा भी करःघुका:था। जेन-साधुओं
के प्रति भक्ति न होने पर और उन्हें अपमानित करने की भावना
होने ঘক मीः. राजो श्रेणिक, उन मुनि: के रूप, से; ./इस प्रकार
आकर्षित एवं प्रेभावित हुआ, कि:उसे यह याद दी न रहा, कि.
ये मुनि रानी. चेलना. के उन्हीं: गुरुओं में से हैं, जिन्हें अंपमानित
बाग में आया तो था केवल सनो-पिनोदे के लिए, लेकिन पूंचे-
.. संचितं पुण्य के प्रताप से यहाँ उसे.सच्चे घमं कीः प्राप्नि होनी -
: थी; इसलिए वह् अपने हृद्य य के दुर्भावीं को भूल गेया. ओरः-~
त्तस्य पाएं उ वंदिता कोञण य पंयाहिरणँ ॥
नाडइदूरमणासन्ने पंजली ` पडिपच्छहं | ७ ॥
भावार्थ--राजा श्र णिक नें उन मुनि के चरणों को बन्दना
करके, उनकी: प्रदक्षिण की ओर न बहुत समीपं नं बहुत दुर
चैठ कर हाथ जोड़ वह उन मुनि से पूछने लगा ।. ` ` .
ভর হালি. राजा ने, अपना वह सिर जो प्राण जाते भी
-दसरे किसी के--और विशेषतः जिससे प्रेम नही है, उसके-आगे
नहीं भुका:सकत्ता. था; मुनि के परों पर डाल दिया ॥ - फिर मुनि
की प्रदक्षिण करके वह समभ्यतानुसार इस प्रकार बेठा कि न बहुत
User Reviews
No Reviews | Add Yours...