सम्यग्दर्शन का प्रकटीकरण | Samyagdarshan Ka Prakatikaran

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Samyagdarshan Ka Prakatikaran by वाचस्पति - Vachaspatiविजयराम चन्द्रसूरीश्वर - VIJAYRAM CHANDRASOORISHWAR

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विजयराम चन्द्रसूरीश्वर - VIJAYRAM CHANDRASOORISHWAR

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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আন্ত { १३] आजीबिश का साथन बनाया हुआ है; बाच्र दियावें में सिद्द को कुत्ते बी भाति और सर्प को सिलौने समान क्रीड़ा कराता है तथापि अन्दर हृदय में तो उस्ते साप और सिंह मयकर द्वी छगते है । अत्त चह उन से सायधान रद्दता है कि कहीं मेरी मूल पर इनके द्वारा मुमेः प्राणों से द्वाय धोना न पढ़े । ठीक उसी तरह सम्यग्दष्टि रामादि टुरमो फो पहचानता है । उसे नमो समत्त करनी पडती है । परन्तु भीतर मन में वह इदे पितते जन्तुभ फे समान मानत। ह । इसी कारण यद पात्‌ कहदमी भी असगत नहीं है कि जिसमें सम्यग्दशन प्रकट दो चुका है. और जो लागत है यह तो न सुख से सो सकता है सौर न सुपर से सा सकता हूँ । ससार के सब सुस उसे देय और मयकर छगते हैं ।[ অহ वस्तुस्थिति भली भाति छक्ष्य में रसने योग्य है। आन करई व्यक्ति अज्ञानता वरा देखा कद दे द कि सम्यक्त्व तो দা হুয়া है पर तु चारित्र आवश्यक नहीं है और इस बात की पुष्टि में वे शासन वचन उपस्थित करते हैं कि-- দন্ঘাহিন লিহা छट्दे शाश्यत पदयी समक्तित विण नहिं कोई रे (! परन्तु इख प्रलर कयम करने वाते भूख चवि दै कि सम्यक्स तो चारि आप्ति वी इच्छा उत्पन्न करता है | उपशेक्त शास्त्र वचन तो द्रब्य चारिय दी अपेक्षा से कद्दे गये हैं। भाषर चारित्र की अपेक्षा से द धात नदीं षी गयी । शाश्वव सुख प्राप्नि देतु चारित्र फी भाय, श्या सर्दी, फा इस श्या वाञ्य का अभिश्राय नहीं। आत्मा में सम्यग्दृश्तन प्रगट हो चुका दो जीर कदाचिन्‌ द्रव्य चारित्र प्राप्ठ न हमा हो तयापि वद सम्यग्दष्टि अपने सम्यवत्व का शुद्धि करण करते हुए अपनी आत्मा की ऐसी निर्मेडता सिद्ध कर लेबे कि निससे बह्दे” ,., बीचराम दशा कर प्राप्त कर सत्ता ई-यद बाद बिछकुछ सम्भव है




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