श्री मातृवाणी प्रश्न और उत्तर | Shri Matrivani Prashn Aur Uttar

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Shri Matrivani Prashn Aur Uttar  by श्री अरविन्द - Shri Aravind

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० प्रदन और उत्तर यहां उन्होंने कहा हैः “...इस उदासीका परिवतन एक कदम हं... ? हां, जब तुम उदासी और दुर्भावनामेंसे निकल आओ तो तुम देखोंगे कि यह एक आक्रमण था, तुम्हें कुछ प्रगति' करनी थी, और सब चीजोंके होते हुए तुमने अपने अंदर कुछ प्रगति की है, तुमने आगे कदम बढ़ाया है! साधास्णतः, किसी चीजको, भके वह॒ बहुत कम सचेतनं रूपमे हौ, प्रगतिकी जरूरत है, परंतु वह करना नहीं चाहती, तब यह तरीका अपनाती है; एक बच्चेकी तरह जो रूठ जाता है, उदास होता है, दु:खी, विपण्ण होता है, उसे गलत समझा जाता है, वह परित्यक्त रहता है, सहायता नहीं मिलती तो सहयोग देनेसे इंकार करता हुआ वह, जैसा कि मैंने अभी कहा, यह दिखानेके लिये कि वह खुश नहीं है, वह उदासीमें संतोप मान लेता है। विशेष रुपसे यह दिखानेके लिये कि खुश नहीं है, वह उदास होता हैं। तुम यह चीज प्रकृति को दिखा सकते हो, तुम यह (यह व्यकिति- पर निर्भर है), तुम यह भगवान्‌कों दिखा सकते हो, अपने चारों ओरके लोगोंको दिखा सकते' हो। यह हमेशा अपना असंतोष प्रकट करनेका एक तरीका होता है। “तुम जो चाहते हो उससे मैं संतुष्ट नहीं हूं,” इसका मतलब है: में संतुष्ट नहीं हूँ और में तुम्हें दिखा भी दंगा कि में संतृप्ट नहीं हूं।” समझे ? लेकिन इसके बीत जानेपर, जब किसी कारणवश तुम इससे बाहर निकलनेका आवश्यक प्रयास करते हो ओर उसमेसे निकल अति हौ, तो साधारणतः, देखते हो कि सत्तामें कोई चीज बदल गयी ह, क्योकि, समस्त दुर्भावनाओंके बावजूद, प्रगति' हुई तो हैँ, छेकिन बहुत तेजीसे नहीं, बहुत तड़क-भड़कके साथ नहीं, निश्चय ही तुम्हारी महान्‌ महिमाके छिये नहीं, फिर भी, प्रगति हुई है। कुछ चीज बदली है। बस? माताजी, यहां श्रीअर्रवद “वियक्तिक अहंके निर्माण की बात कहते हें। वेयक्तिक अहंका सतल्‍रूब क्‍या हं? वैयक्तिक अहं भी होते हैं, और सामुदायिक अहँ भी। उदाहरणके लिये, राष्ट्रीय अहँ सामुदायिक अहं है। किसी दलका सामुदायिक अहं हो सकता है। मानवजतिका एकं सामुदायिक अहं होता है। वह कम या ज्यादा बड़ा होता है। वैयक्तिक अहं किसी निद्िचत व्यक्तिका अहं होता है, वह अहंका' सबसे छोटा प्रकार है। ओह, एक प्राणिक अहं, एक




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