दाराशिकोह | Darashikoh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ ] दाराशिकोह था। क़्रान और हदीस का अध्ययन उसने उस ताकिक की तत्परता और पक्षपात से किया जो किसी विशेषवाद को सिद्ध करने का उत्सुक हो। अपने कुरान के अध्ययन में, उसने शास्त्रीय सम्प्रदाय के प्राचीन विद्वानों की दीकाश्रों को अस्वीकृत कर दिया । उसको श्ररबीप्राधान्यतासे घृणा थी क्योकि उसकी दृष्टि में उससे असहनशीलता और मानसिक निष्फलता की उत्पत्ति होती थी | वह कानूनदानों से दूर रहता और इस्लामी कानून के अध्ययन की उसने कभी चिन्ता न की । शाहजहाँ की इच्छा थी कि युवराज को अपनी देख-रेख में शासन के कत्तंव्यों में शिक्षित करे और उसने उसको सदैव दरबार में रखा। परन्तु दारा में यह सामथ्यं नथो कि व्यक्तिगत सम्पक से मनुष्यों और अन्य प्रश्नों को समक सके । यद्यपि उसका पालन-पोषण दरबार में हुआ था तथापि बह कभी भी किसी दरबारी को ठीक-ठीक समझ नहीं सका । अपने जीवन के श्रारम्भ मेही नवयुवक राजकुमार भरमम पड़ गया) भ्रकबर कौ मृत्यु से पतनशहीलं उदारवाद केशान्त तल के नीचे साम्राज्य में प्रतिक्रियावादी शक्तियाँ शक्ति-संचय कररहीथीं। श्राभासोंसे दारा को धोखा हुआ ओर शाहजहाँ ने सम्भवतया आगामी विपत्तियों के प्रति उसको सचेत न किया था। यदि अकबर के साम्राज्य का उत्तराधिकार वास्तव में किसी को पराप्त करना है, तो यह कार्य केवल अकबर की नीति और आदरशंवाद के द्वारा ही सम्पादित हो सकता है, ऐसी धारणा राजकुमार की हुई । इस प्रकार भ्रकबर का कंतेव्य-भार राजकुमार को वहव करना पड़ा; परन्तु उसके श्रपुष्ट कन्धों पर यह भीम का भार सिद्ध हुआ । दारा को बोध हुआ कि किसी नवीन धमं का विकास करना निरथंक होगा जो हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों के लिये समान रूप से अस्पष्ट और अस्वीकार्य होगा । वह इसका कभी विचार न कर सका कि इस्लाम के चक्र से बाहर निकल कर वह प्रेम और मैत्री भाव से मनुष्यमात्र का आलिगन कर सके । इस्लाम के हृदय-स्थल में ठहर कर ही प्रतिषटन्धी सम्प्रदायो के लिये वह समान मिलन-स्थल की खोज करना चाहता था । उसने निश्चय किया कि मुहम्मद के प्रति वह अपनी निष्ठा को स्थिर रखेगा और साथ-साथ एकता और शान्ति के उदारहृदय अभिवर्धक का काये करेगा और समस्त संसार की उन्नति, संस्कृति और सभ्यता की श्रात्मा से इस्लाम को संयुक्त करेगा । इस्लाम कौ दीक्षाके मार्ग को उसने ग्रहण किया और अपने पर्याप्त | अवकाश को उसने धर्म के तुलनात्मक अध्ययन के निमित्त श्रपित कर दिया। तौहीद अर्थात्‌ विश्वदेवतावाद के सिद्धान्त के विषय में अपने ग्रन्वेषण-मार्ग सें उसने यहुदियों, ईसाइयों और ब्राह्मणों के धर्म-प्रन्थों के अनुवादों का अध्ययन किया ।




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