वैदिक इन्द्रोपाख्यान का उदभव एवं विकास एक समीक्षात्मक अध्ययन | Vadik Endropakhyan Ka Udbhwa And Vikash Ek Samikshatmak Adhyayn
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
356
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about इन्दुप्रकाश मिश्र - Induprakash Mishra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ऐसा प्रतीत होता है कि वेदमंत्रों की मुलप्रकृति रक् , , यजुष एवं साम
ही थी । जैमिनीयसूत्र में इन तीनों को परिभाषित करते हुए कहा गया -
1 तजसच्चत्रार्थकरोन पादव्यवत्था (रजेमि0 2-1-35
2 गी तिष्व सामाख्या जेसि0 2-1-36
3. शेध यजुष ्राब्दः पै मि0 2-1-37
सप्रकार वेदर्मत्रौ के त्रैविध्यके ही कारणं उत “त्रयी কলা ঘা |
वेदत्रयी के तायं अधर्वविद कौ भी गणना करने पर उत्े चतुष्टयी ' की संज्ञा
मिली । परन्तु अथर्ववेद वेदमंत्रों की किसी प्रकृति जिते रक् , यदुष एव॑ तामूं कौ
संकेतित नही करता । बल्कि वह रुक अ्रधिकििघ “अथर्वा” के नाम पर आधारित है)
कमी -क्भी उते तमन्वित रूप ते अर्वा ङ्ग रस-सं हिता” भी कहते हैं ।
त्रयी के मंत्र आम्ृष्यिक फल देने वाले हैं परन्तु अथर्ववद शैेहिक-फ्ल देता है |
इस आशय की व्याख्यायें শী प्रदर मात्रा में मिलती है | अथर्वविद के मंत्र मारण, मोहन,
उच्चाटन , विद्वेषण, विधापहार, राष्ट्र, धर्म , संस्कृति , विश्रदश्ञान्ति , सवोदिय
तथा पृथ्वीम॑गल जैसे सांसारिक विषयों सीध जुड़े हैँ । फ्लतः अक् , दुष एवं सामकी
प्रकृति ते पथक् होति हर भी उनका महत्त्व किसी माने मे क्म नही हि ।
निक्त ।11-2-16 तथा गोपथ-ब्राइमण 15५ में अथर्व शब्द की रोचक व्याख्या
मिलती है । थर्वई धातु हिँता श्वँ कौटिल्यवाची है । अतः अधर्वन् का तात्पर्य है -
अकुटिलता तथा अछिंसा वृत्ति ते मन की स्थिरता प्राप्त करने वाला व्यक्तिृञ्रधिकिेषु '
इस भाव की पुष्टिट अथवविद के 6-2 तथा 20-2-26/28 संख्यक मंत्रों ते भी हो जाती है ।
गद्टी महर्षि शरद च्यतुर्थ পির के ब्यवस्थापक है |
इसप्रकार त्रयी शव॑ँ चतुष्टपी - दोनों के ही पक्ष प्रभृत प्रमाण मिलते हैं ।
अवान्तरकाल ओँ त्रयी शब्द “गकृ-यजुष्ठ तथा साम के अर्थ में नहों, प्रत्युत चारों वेदों
के अर्थ में छूढ़ हुआ ता दृष्टिगोचर होता है ।
রাতারাতি পাস नि मनमयिि
द्रष्टव्य: तऋरघ्र्मनेद् 2८ 226 হার 2৪
User Reviews
No Reviews | Add Yours...