गीतानुशीलन भाग - 2 | Geetanusheelan Bhag - 2

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Book Image : गीतानुशीलन भाग - 2  - Geetanusheelan Bhag - 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जबलपुर अनाथालय । 5৯482 টি ~ श्री जबलपुर अनाथालय का सन्‌ १६२३ है० का विवरण | (९ ) एककालीन दोन--दाम की रचीकृत सक्रम ২5ই০%0)। কী ৫৫91) আলী तक व॑स्ख शनै चाक है। शीष १२७१६॥)। में, থা জা में जमा है ६५०७), प० राधिकाप्रसादजी पाठक से चन्डा वशी मध्ये पावना ह १५२५), अनाथालयके सामाम आदि में छगा है ५६६१८. ओर प्रधम হা र्पो मै अनाथाखय के सर्च खाते खच्च छुआ है ८२६५४) ६२ (५) मासिक चन्दा, रूइ और फुटकर दानसे इस घर्ष आय हुई २७१७।०)२ - और अनार्थों के অন্ধ बाते खर्च हुआ १८७६ ~)१ २ + स्थायी सामान कौ डती पडती ४३)४-२ “5१६२००)॥ शेष बचत मै रहा है ७६५५)८ ५ | इंरा साल एककालीन दान को रकम से दक खर्च नहीं हुआ । (३ ) अनाथे का लेखा--गत साक के २७, इस सार भर्ती हुए ४२ कुछ ६६ जिसमें चले गये ४८ शेष बचे २१ वर्ष के अन्त मैं जे। मौजूद हैं--बाऊक ६. क्िशे।ए १. युवक असमर्थ २. वृद्ध १, बष्यी ? चालिका ६ छूद्रा १, कुछ, २१. (४ ) इस साल कहार, काछो, फैटवार, कोरी, खाए, चप्तार, तेली, ओदी, नाऊ, बानिय।, ब्राह्मण, छाल, अहीण, बढई, छत्री, काल, कुरमी, बेलिया, वैरागी, गोड, पथ्या, ह्वा, सोनार, भीर रोधी इतमे ज्ञात के अनाधथोी का पालन हुआ | (५) ये सब अनाथ जिन जिलों के रहने घाले है उनके सामभे है- सप सेहावल, मेहर, भजयगढ़, बरेशा, जौनपुर, नरसिंहपुर, फामी, सागर, सयु, अवल्पुर । (६) अर्थाम्ाय ओर स्थानाभाव के कारण आज तक अनाथों के ट्य कैर उद्योग धस्या निश्यित नही है। सका है तवापि इन तीन वर्षों में उन्होंने ५१६) की पू जी एकट्ठी को है, जिस हे साथ जना वाकूय की पूंजी का केई सम्बन्त् यह है। अनाथों का कमाई खाता हवतन्त है और इसी पूजी से यथा सम्मव उधोग घन्धा है।ता है । (१०) अग्राथों को शिक्षा--ल३उ बे लडकी दोनों रूफूछ में पढ़ले हैं | (११) भन,थालय की उन्नति के उपाथ--शहर के बाहर जब तक भनाथाझृय फे




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