सिद्धांत और अध्ययन | Sidhant Aur Adhyan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sidhant Aur Adhyan by गुलाबराय - Gulabray

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about गुलाबराय - Gulabray

Add Infomation AboutGulabray

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( (६२) लोकोत्तरचमस्कारप्राण कैश्चिस्ममातृसि: । - स्वाकारवदशिन्नलवेनासभास्वाथतते रस; ॥ रजस्तमोभ्यामस्पण्ट' मनः सर्वभिह्दीच्णते ।? -“साहिस्यदपण (१२ ,२१,४) ग्र्थात्‌ सतोगुण की प्रधानता वा भ्ाधिक्य के कारण रस भ्रखण्ड श्रोर स्वयं प्रकाशित होने वाली झ्ानन्द की चेतना से पूर्ण रहता है। इसमें दूसरे किसो ज्ञानः का स्पर्श भी नहीं रहता है और यह ब्रह्मानन्द का . सहोवर भ्राता होता है। संसार में परे का (बह होता तो इसी लोक का है. किस्तु क्षाधारण लौकिक अभ्रमभव से कुछ ऊपर का उठा हुमा होता -है ) चमत्कार इसका जीबन- प्रांण-हैं किन्हीं-किन्ही सहृदयों रसिकों द्वरा प्रपने से भ्रभिन्त' हूंप मे (श्रौतं आस्वादकर्ता और भास्वाद्य में कोई भेद नहों रहता है) इसका श्रास्वाद किया जाता है। मन की सात्विक़ ग्रवसश्था वह होती है जिसमें रजोगुण और तमोगुण का स्पर्श नहीं रहता है । दशषूपककार धनल्जय ने भी काब्यानन्द को श्रह्यानम्दं ` का आत्मज कहा है -- स्वाद; काव्याथ्रसंभेद्ादास्मानन्द्समुक्नवः(दशरूपक, ४४३) । रस की इस व्यार्या के श्रागे उसको केवल सुखबाद ([[60्‌011) 7) मानना उक्षे साथ श्रन्याय करना होमा । सुखं श्रौर श्रानन्द में भेद ह । श्रानन्द प्रतीय श्रीर्‌ स्थायी होता ह--सुलमाव्यन्तिक' यत्तदूशुदधिशराह्यमतीग्दियम्‌ (भीमद्धगचद्‌गीता, ६।२१) । रस का श्रानन्द लौकिक इच्द्रियजन्य सुख्ध से ऊँचा पदार्थ होता है। ब्रह्मा- नन्दे कौ यह सहोदर श्रवश्य है किल्तु छोटा भाई या पृत्र ही हैं। अ्रह्मानत्द- का ही. यह लोक में प्रवतरित रूप है । इसमें विकास, विस्तार, क्षोभ और विक्षेप की- मतोंदक्षाएँ भ्रवश्य रहती हैं किन्तु रस के प्रख्वणठ, चिन्मय भ्रानन्‍द की प्राप्ति की मार्गरूपा हैं। प्रत्येक मनुष्य के जीवन में ऐसे क्षण श्राति हँ जब वहं क्षुप्र स्वार्थों से ऊंचा उठकर श्रानःद की दशा में पहुँच जाता है। उसका हृदय लोक- हृदय से साम्य प्राप्त कर लेता है। विश्वात्मा से उसका तादात्म्य हो जाता है । यही रसदश्ा हूँ । इसी को प्राचार्य शुब्लजी ने 'हृदय की सुक्तावस्था' कहा है । यों तो अलक्षार-शास्त्र के बहुत से आ्राचार्य हुए हैं किस्तु उपरिवर्शित ्राचार्यों के अभ्रतिरिक्त तीत श्राचारयों का ताम विश्लेष कप से उल्लेखनीय है--- . ध ০: (1) कुस्तल, ( २) राजश्वर और (३ ) क्षेमेत्र । १ वक्रांक्ति ओर वक्रोक्ति का उल्लेख हम पहले भामह के साम्बस्ध . कुन्तल भे करनुषेहं। कुन्तल ने बक्रोविति को कष्य का व्यापक गुण मात्रा हूँ । कवि का मार्ग साधारण लोगों के




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now