सदगुरू स्वामी गंगेश्वरानन्द की लेख तथा उपदेश | Sadguru Swami Gangeshwaranand Ke Lekh Tatha Upadesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन-जूतत मंडल में कितनी ही जाति, धर्म व देश के छोग हैं। क्‍या धनी क्या निधन, क्या सुशिक्षित क्‍या निरक्षर, आन्राल-बुद्ध स्त्री-पुरुषों का एक बहुत ही बड़ा समुदाय उन्हें अपने गुरुदेव मान कर एक प्रेम-यूत्र से बंध कर एक परिवार ही चन गया हे । पू. गुरुदेव की अगाध छपा का अनुभव प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आकक्षा च योग्यता के अनुसार होता है] स्वामीजी तो साक्षात्‌ कतर हं न किसी से आसक्ति रखते हैं न किसी का अनादर करते हैं। उनका दरबार हर समय हर किसीके लिये खुला ही रहता है । उनकी अल्लेकिक तेजोमयी वाणी जो एक बार सुन ले उस के लिये व्यावहारिक जगत्‌ के पदार्थों का महत्व नष्ट हो जाता है, यह उनके प्रवचन की बिरिष्टता है} एेसे सद्गुरु जिसको मिं, उसके भाग्य का कहना ही क्या ! भक्तिवित्तिसमुचेता वेदवेत्ता तपोनिधिः । कस्पदुमः प्रपन्नानां पायाद्‌ गंगेश्वरो गुरः । म. मं. श्री स्वामी घोंकारानन्द्‌ व्याकरणाचार्य, तके-वेदान्त-तीथे १२




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