भारत में राष्ट्रपति शासन की राजनीति | Bharat Men Rashtrapati Shasan Ki Rajaniti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32 MB
कुल पष्ठ :
394
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शक्तिशाली লিন सरकार के निर्माण परर वल दिया। उन्टने दश की एक्ता तथा अखण्डता
को सर्वापरित प्राथमिकता दी। भारत एक विशाल राष्ट्र ह. जिसम मिल-भिन भाषाये बोलने
वाले विभिन सम््रदाओ ओर जातियो के लोग निवास क्रते ह। दूसरी तरफ भारत की
एतिहासिक केन्द्रविमुख प्रवृप्तिया, स्वतन्रता के समय देशी राज्यो के सम्मिलिन की समस्या
आर सम्प्रदायिक्ता तथा प्रान्तीयता इत्यादि की विकटता को देखते हुए एक मजबूत परिस
अनिवार्य था, साथ मे इस बात की भी आवश्यकता महसूस की गयी धी कि विदेशी
आक्रमण अथवा आन्तरिक विघटन जेसे गम्भीर सकट के समय राष्ट्र के अस्तित्व को होने
वाले खतरों में शीघ्रतापूर्वक निपटने के लिए केन्द्र के पास पर्याप्त शक्तिया होने चाहिये ।
साथ ही इस बात की आवश्यकता थी राज्य प्रशासन को पगु बना देने वाले हिसक उपद्रवो
से देश की एकता तथा अखडता को गम्भीर खतरा हो सकता ह, जिसका रामना करना
राज्य की क्षमता तथा ससाधनो की सीमा से पूरे हो सकता है। अत एसा स्थिति मे केन्द्र
द्वारा हस्तक्षेप तथा सहायता करना आवश्यक होगा। इसीलिए सविधान द्वारा केद्ध को यह
कार्य सापा गया है कि वह विदेशी आक्रमण तथा आतरिक उपद्रवो से प्रत्येक राज्य की
रक्षा करे।
सविधान निर्माता इस तथ्य को भली-भाति जानते थे कि अभी जनता का सरकार
की ससदीय प्रणाली का कोई अनुभव नहीं है ओर न ही ऐसी परम्परा विकसित हो पायी
हं। ऐसी स्थिति मे किसी राज्य में सवेधानिक ढॉँचे के शिथिल होने की सम्भावना स
इनकार नहीं किया जा सकता है। इसीलिए सघ को यह सुनिश्चित करे का कार्य सौपा
गया राज्य कौ सरकार सविधान के अनुसार चल रही है अथवा नही।
इस अनुच्छेद क सर्वप्रथम प्रयोग मे पजाव मे 1951 मे क्या गया। लेकिन
प्रारम्भिक वर्षा म इसके प्रयोग के वहुत उदाहरण नही मिलते लेकिन वाद के वर्षा से
विशेषकर 1967 के बाद इसका अधिकता से प्रयोग किया गया। यह बात अग्रलिखित
आक्डा से स्पष्ट हो जाती है।
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