जैन शासन | Jain Shasan

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Jain Shasan  by सुमेरुचन्द्र दिवाकर - Sumeruchandra Divakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ज्ञान, ध्यान, तप, लीन उपायक उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी महाराज ৮111 गया था को दिया गया है तथा द्वितीय पुरस्कार भारत की सामाजिक सस्कृति कं प्रेरणा स्रोत पद्मभूषण डा० डी० वीरेन्द्र हेगडे को दिया गया है। पूज्य गुरुदेव का मानना है कि प्रतिभा ओर सस्कार कं बीजो को प्रारम्भ से ही पहचान कर सवर्द्धित किया जाना, इस युग की आवश्यकता है। इस सुविचार को रॉची से प्रतिभा सम्मान समारोह के माध्यम से विकसित किया गया जिसमे प्रत्येक वय कं समस्त प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं का सम्मान, बिना किसी जाति/धर्म के भेद्-भाव के किया गया। यह वार्षिक कार्यक्रम भारतवर्ष के विभिन प्रान्तो के मेधावी जैन छत्रो का चयन कर सम्मानित करने के उस प्रेरक उत्सव के रूप मे उभर है जो कश्मीर से कन्याकूमारी तक एकत्व बोध तो कराता ही हे, वात्सल्य को साथ गुणो कौ पहचान का सशक्त माध्यम भी बना है। गुणानुवाद की यह यात्रा गुरुदेव के बिहार सं विहार के साथ प्रत्येक ग्राम जनपद ओर नगर मे विहार कर रही है ओर नयी पीढी को विद्यालयो से विश्वविद्यालयो तक प्रेरित कर रही है स्फूर्त कर रही है। मील का पत्थर परम पूज्य उपाध्याय 108 श्री ज्ञानसागरजी महाराज वर्तमान युग के एक ऐसे युवा दृष्टा क्रान्तिकारी विचारक , जीवन-सर्जक और आचारनिष्ठ दिगम्बब सत है जिनके जनकल्याणी विचार जीवन की आत्यतिक गहराइयो अनुभूतियो एवं साधना की अनन्त ऊचाइयो तथा आगम-प्रामाण्य स॑ उद्भूत हो मानवीय चिन्तन के सहज परिष्कार मे सनद्ध है। आचार्य परम्परा का नवनीत, गुरुदेव के जीवन मे प्रतिबिबित हुआ है ओर यही कारण है कि मानवीय ऊर्जा के रचनात्मक उपयोग की सभावनाओ का पता लगाने मे उनकौ सतत्‌ अभिरुचि रही है। वे अनुक्षा ऊर्ध्वग है अत्‌. जीवन की उदात्त ऊर्ध्वगामी शक्तियो मे उनकी गहन आस्था रही रै। जडता एव प्रमाद की स्थिति से उन्हे इन्कार है ओर समय के प्रत्येक क्षण का सम्पूर्णता मे उपयोग करने एव रचनात्मक प्रस्तुति करने मे उनका पूर्णं विश्वास है। उनका मानना है कि समय की सही पकड एव उसकी समग्र ऊर्जस्विता के दक्षवत प्रयोग से ही विकासं का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। वे चिन्ता के स्थान पर चिन्तन, व्यथा की जगह व्यवस्था ओर प्रशसा की बजाय प्रस्तुति की सस्कृति के उद्घोषक हे। यही कारण है कि इस वाग्मी निर्लिप्त निष्काम सत की चिन्तनं यात्रा अनेकान्तिक अवधारणाओं का एक एेसा चमकता आईना है, जिसमे मानवीय सवेदनाओ




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