वैदिक शिक्षा | Vaidhak Shiksha

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Vaidhak Shiksha by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नलनिटपट लिए ष हु सरल. यार न । २३ <) स्तर भोजन ज्वरमें ।--श्धिक खड़ा खानेसे, ज्वर किम्वा दूसरे रोग उत्पन्न छोनेसे नाडोःअधिकतर सन्तप्त रहती है। कालो पीनसे ब्वराटि पीडाक नाड़ोको गतिकी तरह्त धोसी चन्तती है । असौगुसें ।--अ्रजौर्ग रोगवी नाड़ी कठिन -और उभय पार््यमें जडित भाव से सन्ट मन्द चलती है, इससे आमाजोय की नाडो स्पृत्त, भारी और थोडो कठिन : पक्ाजौण में नाडो दुर्ववल, सन्दगामी और वाताजौर से नाड़ी अधिक चलती है। विसुचिकासं ।-विसुचिका ( झेजा ) रोग मे नाडोकी गति सेकके गतिको तरक्त, शरीर किमी किसी वक्ता इस रोगमे नाडो का चलना सालम नहीं होता तथापि अगुष्ठ सरूलसे किच्युत न ड्ोनितक इस रोगको श्रसाध्य नर उाग्त!।. विलस्विका रोगसे भी नाड़ो भेंकक गतिकी तर चलतों हैं। अग्निमान्य श्र घातुसीण रेगसें नाडो सी, शीतल आर अत्यन्त स्दु होती है । वण्तिप्रटीप्त रक्तनेंस नाड़ी लघु और वलतवती छोती है । अतिसावसें ।श्रतिसार रोगसे सेठ (दस्त! के बाद नाड़ी वेदम क्षोजाती है, आमातिसार मे नाडी स्थल श्रार जडवत्‌ क्रोती है। ग्रहगी रोगसे हाथक नाड़ी की गति भेकक गतिकों तरह और पैरकी नाड़ी छसगतिसे चलती है। मलमूलक रोधसे ।-सलसूत टोनीका एक. सड्ठ अवरोध अधवा ढोनोका श्रथक भावसे अवरोध छीनेपर, सल- म्रूत्रका वेग धारण से और विरसुचिका, अश्मरो, सूल्रकच्छ तथा ल्वर प्रदति रोगमे मलसूत्र बन्ट क्ोकर नाड़ी सुच्म मेकगतिको तरह स्पन्दित छोती है। साधारणतः आना और स्ूलछच्छु रोगमे नाड़ी कठिन और भारो चलती है । ज््ण ट




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