सौभाग्य रत्नमाला | Sobhagya Ratnmala
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सत्य!
আল
कहा कि आप दोनो में से एक २ करके स्लान कर भ्रावें और
एक जन अपना सामान देखते रहे | साधुओं ने कहा बहुत
टक द । एेसा कद कर जव कि एक साधु स्लान फो गया त
सालिक दूसरे बैठे मद्दात्मा के पास आया और पूछा कि महा-
राज़ जो दूसरे महात्मा आप के साथ हैं वे कैसे हैं ९
इस प्रश्न पर साधु वोल्ा कि सेठजी क्या कहे, वह ते
बिल्नक्षल बेल हैं, कुछ नहीं जानते, व्यथ द्वी साधु बने है, खैर !
जय पहला साधु श्रागया और यह स्नान को गया, तब फिर सेठ
ने इससे भी पृछा कि आपके साथी मद्दात्मा कैसे हैं ? तथ इसने
भी कदा कि क्या कदं सेटजी चद ते विलकरुक्न गदहा ₹।
चम सेटजी ने दोनो को पहचान लिया कि दोतों ही हृदय
फे काने हैं, चुगलखोर हैं ।
सेठजी को भोजन देने की भ्रपेज्ना उन्हे तंग करना विशेष
फचिकर हुश्रा आर तदनुसार एक नाद में विनोले और एक
टाकरी मे घासं भरवा कर दोनों के सामने रखबादी और
कहा कि वैल मदात्मा फे लिए विनोले तथा गदह्ा के लिए
धास ही उचित साजन है । इस कल से वे दोनों साधु अपना
कहना याद कर सब समझ गये आर थोती लँँगोटी लेकर
वहाँ से चम्पत हुए।
मनुप्य जब तक अपने समान सब श्रात्माओं को नहीं
देखता, जब तक पद पद पर पराया हित करना नहीं चाहता
तष त सदय द्य का भागी नहीं दो सकता ।
२ १७
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