गुणस्थानक्रमारोह | Gunasthanakramaroh
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
222
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)। प्रथम वॉचनीय विषय ।
~
২... ৫৯ সি ॐ
कभेकी सूल तथा उत्तर সন্ধলিষা।
१ ज्ञानावरणीय, २ दशैनावरणीय) २ वेदनीय, ७ मोहनीय,
५ आयु, ६ नामकम, ७ गोत्रकमे, ८ अन्तराय ।
इन आठों ही मूल प्रकृतियोंका काये बताते हैं,
ज्ञानावरणीय कमका कार्य ज्ञान गुणको दवानेका है। दशेना-
चरणीय कर्मका कार्य दर्शन गुणकों आच्छादन करनेका है | वेदर्नाय
कर्मका काय आत्माको सांसारिक सुख दुःखका अनुभव करानेका
` रै । मोहनीय कमैका काये आत्मीय चारित्र गुणको परगट न होने
देनेका है। आयु कर्मका काये जीवात्माकों संसारमें स्थिति करा-
नेका है । नाम कमेका कायं जीवको अनेक प्रकारकी आकतियां
करानेका है । गोत्र कर्मका काय जीवको डच नीच दश्षायं भप्त
करानेका है ।' अन्तराय कर्मका कायं आत्मीय अनन्त शाक्तिको
रुकावट करनेका हे
उन्तर प्रकृतियां ।
ज्ञानावरणीय कर्मकी उत्तर प्रकृतियें पाँच होती है ज्ञानयुण
के पाँच भेद होते हैं, मतिज्ञान, भतज्ञान, अवधि ज्ञान, मनःपयेव
ज्ञान, केवल ज्ञान, इस पूर्वाक्त पाँच प्रकारके ज्ञानभुणको आच्छा-
दन करनेवाली-१ मतिज्ञानावरणीय, २ शुतज्ञानावरणाय, हे अव-
पिन्ञानावरणीय, ४ मनःपर्येव ज्ञानावरणीय, तथा ५ केवल ज्ञाना-
वरणीय । ये पाच प्रक्ृतियां हैं । ¦ |
“ दर्शनशुणको दबानेवाली दशनावरणीय कर्मकी नव प्रकृतियां _
हैं, सो नीचे लिखे मुजब समझना.
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