जैनतत्त्वसार | Jaintatvsar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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€ ২.) नामकः उत्तम नगरीपें श्रीशीतलनायका सान्निध्य भ्र करके मरचन्द्र सत्ानके ढिये यह ग्रन्य रचा गया है, १९७९ वर्ष आखिन पृणिमा बुधवार तरिजय योगमें इस प्रश्नोचरसे अलुंकृत अमल पवित्र उत्तम ग्रन्थ पा्मवछ्ठभ गाणिकी सहाय- तासे अद्देत परमात्माके प्रसादरूप श्रीकी प्राम्तिके लिये वाचक उपाध्याय ॐ सरचंद्रने पूर्ण किया. ? ४, मूरचंदर वाचकनें अपनी परावर निम्नङ्खित बताई हैं, ( खरतर गच्छकी हृहत शाखा ) निनभदरग्ररि - मेरुसुन्दर पाठक ৫ হদ হ प्रियपाठक १ चारित्र २ उदय वाचक पीरकरूश परवद वाचक, पद्रवद्धम गभि,




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