चौथा कर्मग्रन्थ | Chautha Karamagranth

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Chautha Karamagranth  by पं सुखलाल जी कृत - Pt Sukhlal Ji Krat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ই यह पुस्तक लिखकर तो बहुत दिनोंसे तैयार थी, पर छापेस्रानेकी सुविधा ठीक न नेसे इसे प्रकाशित्त करनेमे इतना विलम्ब इजा । जलदा प्रकाशित करनंक्र इराद्स बम्बर, पूना, आप्रा जर कत्तपुरम खास तजबीज़ की गईं | बड़ा खच उठानेके बाद भी उक्त स्थानामिं छपाईका- ठीक मेरु न बैठा, भन्तमे काक्चीर्मे छाना निम्।ित हुआ ! इसलिये पं० सुखलालजी गुज़रातसे अपने सहायकोॉके साथ काकी गये आर चार महीने ठहरे | फिर भी पुस्तक पूरी न छपी ओर तबी- यत बिगड़नेके कारण उनको गुजरातमें वापिस जाना पड़ा | छापका काम काशीमें और पं० सुखछाछजी हज़ार भील-जितनी दूरीपर, इसलिये पुस्तक पूर्ण न छपनेमे बहुत अधिक विलम्ब हुआ, जो क्षम्य है । ऊपर जिस मदद॒का उछख किया गया है, उसको देखकर पाठकों- के दिलमें प्रभ हो सकता है कि इतनी मदद मिलनेपर भी पुस्तकका मूल्य इतना क्‍यों रक्खा गया १ इसका सच्चा समाधान करना आद- इयक है | मण्डछका उद्देश्य यह हे कि जहाँ तक हो सके कम सृल्यमें हिंदी भाषाम जन धार्मिक प्रन्थ सुलभ कर देय जाय । एसा उहश्य होनेपर भी, मण्डल छेखक पण्डितास कभी ऐसी जल्दी नहीं कराता, जिसमें जरदीके कारण छेखक अपने इच्छानुसार पुस्तकको न लिख सकें । . मण्डछका लेखक पण्डितोंपर पूरा भरोसा है कि वे खुद अपने शोकसे ठेखनकायकी करते हूं, इसलिये बल तो समय हा इथा बिता सकते हैं ओर न अपनी जानिबस लिखनेम काई कसर हा उठा रखते हैं। अभीतक ठेखनकायमसे मण्डल ओर लेखकका व्यापारिक म्बन्ध न होकर साहित्यसवाका नाता रहा हैं, इसलिये यथेष्ट वाचन मनन आदि करनेमें ठेखक स्वतन्त्र रहते द । यष्टी कारण हे कि पुस्तक तैयार होनेमें अन्य संस्थाओंकी अपेक्षा अधिक विलम्ब हांता £ । ४ 4 (५ .४




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