कथाकार प्रेमचंद | Khathakar Premchandra

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Khathakar Premchandra by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परे मचन्द के पहले ] १३ नहीं थीं। दँगला तक में अंग्रेजों से पहले कोई कइने लायक गद्य नहीं था | राजा राममोहन राय ही बंगला के प्रथम गद्यलेखक माने जाते हें, यद्यपि यद्द स्मरण रहे कि बेंगला की जो प्रथम गद्य पुस्तक मानी जाती: है, वह राममोहन की लिखी हुईं नहीं बल्कि रामबसु का लिखा हुआ प्रतापादित्य चरित्र था। प्रतापादित्य चरित्र १८०१ में प्रकाशित हुश्रा था । राजा राममोहन ने इस पुस्तक को पांडुलिपि को शुद्ध किया था, किन्तु उनकी निजी कोई रचना १८१४ के पहले प्रकाशित नहीं हो सकी | राममोहन ने कोई उपन्यास नदीं लिखा, किन्तु गला गद्य को सभ्य समाज में प्रचलित कर उपन्यास के लिए आ्राधार उत्पन्न किया | इसके चाद तो ईश्वरचन्द्र विद्यासागर श्रौर एक के बाद्‌ एक लेखक श्राते गये, श्रौर वगला गय का श्रौर साथ ही उपन्यास का जन्म हुश्रा। यह तो बताने की श्रावश्यकता ही नहीं है कि छापेखाने के जरिये से ही इस गद्य का प्रचार हुआ | बंकिमचन्द्र जिस समय बंगला में आये हैं, उसके पते दी कु उपन्यास प्रकाशित दो चुके थे। इनमें समय की दृष्टि से नवनावू विलासे १८२३ में प्रकाशित होने के कारण पुरानी स्वना मानी जा सकती हे, इन लोगों ने गद्य को कुछ दूर तक उपन्यासो- - पयोगी बनाया, किन्तु फिर मी वंकिमवावू को खाय दी साथ स्य की सृष्टि भी करनी पड़ी। इस प्रकार उनको कुआँ खोदना और पानी . पीना बल्कि पिलाना साथ दी साथ करना पड़ा जो काम बेंगला में रामवसु, राममोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्या- सागर ने किया, हिन्दी में वही प्रक्रिया दूसरे तरीके से होती रही | बंगला का प्राचीन साहित्य हिन्दी के मुकाबिले में दो दृष्टि से भिन्न था, एक तो * त्रजनोली की श्रोर कुछ थोड़ी-सी प्रवृत्ति के श्रतिरिक्त बंगला में जो पद्म की भाषा रही, वही बाद को गद्य की भी भाषा रही दूसरा बंगला का प्राचीन साहित्य हिन्दी के प्राचोन साहित्य की तरह ऐश्वर्यशाली न होने के कारण वह अग्रगति में वाघक न हो सका। हिन्दी के कवियों-




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