आर्य समाज लुधियाना का इतिहास | Aarya Samaaj Ludhiyaanaa Kaa Itihaas

Aarya Samaaj Ludhiyaanaa Kaa Itihaas by बाबूराम गुप्त - Baaburam Ram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९ ) स्थामी योभेन्द्रपाड जी, श्री स्वामी नित्यानन्द जी, श्री स्वामी विश्वेभ्वरानन्दं जी, श्री ৭ गण- पति शर्म्मा जी, श्री पं० पूर्णानन्द जी, श्री पं० शिवशंकर जी काव्य तीर्थ, श्री स्वामी ब्रह्मानन्द जी, श्री स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी, भ्रद्धेंय अमर शहीद श्री स्वामी श्रद्धानन्द जी महाराज, श्री नारायण स्वामी जी महाराज, श्री स्वामी सर्वदानन्द जी, मा० मिलखीराम जी श्री स्वामी अच्युतानन्द जो महाराज, श्रो प्रो० रामदेवजी, श्रीइन्द्रजी, श्री म० कृष्ण जी सम्पादक रकाशः तथा अन्यान्य प्रसिद्ध महानुभाव ( जिनके नाम विस्तार भय से नहों लिखे जासके ) इस आये समाज के उत्सबों तथा विशेष अवसरों पर अपने विद्वत्तापूर्ण उपदेशों से यहां की जनता को लाभ पहुंचाते रहे है । प्रीतिभोजन या सहभोज इस समाज के कायकर्त्ताओं ने जहां प्रचार के लिये प्रत्येक उचित साधन से काम लिया वहां परस्पर प्रेम और प्रीति बढ़ाने के लिये कभी २ प्रीति भोजन भी होते रहे है । पेसे सहभोज प्राय: कभी होली कभी दिवाली कभी रक्षाबन्धन, कभी ऋतुपरिवतन तथा क्रमी किसी विशेष अवसर पर हुआ करते थे । उदाहरणाथः-- जुलाई सन्‌ १८६० के एक प्रीतिभोज का उस समय की रिपोर्ट में निम्न वर्णन अंकित है-- “सब आर्य सभा खसद्‌ और सहायक इकट्ठें हुए । २ बजे सायंकाल तक बाग ला० गंगाबिशन में भजन और धर्म्म चर्चा होती रही | वाग़ के दरम्यान का तालाब रूवालव भरवा दिया गया था। आय्य पुरुषों ने चहीं स्वान और संध्या की और फिर प्रीति भोजन हुआ” | इस तरह के सहभोज कभी २ विशेष २ त्यौहारों के अवसर पर सभासदों के घरों पर भी किए जाते थे | परन्तु प्रीष्म ऋतु में बहुत देर तक यह सहभोज बाग़ ला० गंगाविशन में ही होते रहे।| इसके अतिरिक्त कभी किसी आय्य भाई की विदाई के समय तथा कभी दलित भाइयों से मिल्ल कर कभी वसनन्‍त आदि त्यौहारों पर आय्य सभासदों के अब भी सहभोज होते हैं । विधवा विवाह सम्बन्धी काम सन्‌ १६८६ में बाबू देवीचन्द्‌ जी जालन्धर निवासी के उद्योग से कुछ आय्थ पुरुषों ने मिल कर यहां एक विधवा विवाह सभा जारीकी जो सन्तोष जनक काय्य करती रही मगर ला० देवीचन्द्‌ जी के यहां से बदल जाने पर यह सभा टूट गई। परंतु आय्यंसमाज लुधियाना ने विधवा विवाह के काय्य को नियम पूर्वक जारी रखा । खस्री आय्येसमाज ८ जून सन्‌ १८६० में यहां ख्री आय्यंसमाज स्थापित दुआ | प्रारम्भ काल से ही কিবা का प्रचार कार्यं मे विरोष भाग रहा है । प्रत्येक वर्षं नौघरा मे तीजो के त्यौहार पर खी समाज की सर से प्रचार होता रहा है। अनाथालय फिरोज़पुर व कन्यामहाविद्यालय जालन्धर से भी देवियों और कन्याओं को बुला कर प्रचार करवाया जाता रहा है। आय्य॑ समाज के वार्पिकोत्सवों के साथ २ ही इस खी समाज के वार्षिकोत्सव भी होते हैं|




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