मीराबाई | Meerabai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवनी खंड १३ अंत.साक्ष्य के वे पद अधिकाश मीरा की रचनाएँ नही है। परन्तु इस कारके सभी पदों को सहसा अप्रामाणिक मानना भी ठीक नहीं है। छ पद तो मीरा के ही लिखे जान पडते है, परन्तु निश्चित रूप से कुछ कहा ही जा सकता। उदाहरण के लिए देखिए : राणाजीमै तो गोविद का गुण गास्याँ।।टेक।॥। चरणामृत का नेम हमारे, नित उ दरसन जारस्य । १॥ हरि मन्दिर मे निरत करास्या, घूं घरिया धमकास्यँ ।।२॥ राम का नाम जहाज चास्यां, भवसागर तर जारस्य ।।२३। यह्‌ संसार बाड का काटा, ज्यां सगत नही जारस्य ।।४1। मीरा के प्रभु गिरधर नागर, निरख परख गुण गास्याँ 11५॥। [ मीराबाई की शब्दावली, वेलवेडियर प्रेस संस्करण पु० ६६] ग्रह पद मीराँ का ही लिखा जान पडता है। इस प्रकारके कुछ पद सम्भवतः प्रीराँ ने लिखे होगे, परन्तु ज्यो-ज्यो उनकी कीति बढने लगी, त्यो त्यो उनके पम्बन्ध में नई-नई जनश्रुतियों का प्रचार बढने लगा और उन्ही के अनुरूप मीरॉ के नाम से नए-नए पदो का प्रचार भी होने लग गया। इन नए पदों से मीरा के पदो को छाँट निकालना यदि असम्भव नही तो कठिन अवश्य है। अतः इन पदों को अत.साक्ष्य के रूप मे स्वीकार करना ठीक नही है, फिर भी इनसे बहि साक्ष्य का उपयोग तो किया ही जा सकता है और यही, उपयोग उपयुक्त भी है } अंतःसाक्ष्य के इन पदो के अतिरिक्त शेष अगणित पदो मे मी रो की भक्ति- भावना का अद्भुत प्रवाह मिलता है जिनमे उनकी जीवन सम्बन्धी बातों का- निर्देश नही है । इनमे कुट पद तो एसे भी है जिनमे कवि ने अपनी भक्ति भावना के आवेश में अपने जीवन की ओर भी सकेत किया है। यथा: तेरो कोई नहिं रोकणहार मगन होइ मीरॉ चली। टेक लाज, सरम कुल की मर्जादा सिर से दूर करी। मान अपमान दोऊ धर पटके निकसी हूँ ज्ञान गली॥१॥ >€ ><




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