माध्यमिक विद्यालयीय अभिभावक संघ का शैक्षिक क्रियाओं में योगदान : एक अध्ययन | A Study : Contribution Of The Guardian Association In Educational Activities At The Secondary School Level

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-छनकर स्वयं हो निम्न वर्गो के व्यक्तर्यो पहुँच के अर्थ का स्पष्टीकरण करते हये, अरधर येहन ने लिखा है- प्रवेश करके, जनसाधारण तक पहुँचनी थी। लाभप्रद ज्ञान, भारत के सर्वोच्च से बूँद-बूँद करके नीचे टपकना था। +(501020017 ४४25 {0 06166 {€ 1125565 गता) 3009५. 0709 9 01010 7011 11171218901 019 11101211110 01581011101 11800179425 10 11006 00৬/1) ४४205. इस प्रकार से मुगल काल के उपरान्त से भारतीय अभिभावकों की भूमिका को सर्वया नकार दिया गया और शिक्षा की स्वच्दन्द परम्परा जो अतीत काल सरे चली जा रही थी। एकदम लुप्त प्रायः हो चली थी। अर्ग्रेजी हुकुमत में पश्चमी व्यवस्था के अनुसार विद्यालयों को राजकीय सहायताएँ ““ग्राण्ट इन ऐड?? दी जाती थी। राजवार्डो में राजा रईस लोग अपने प्रभाव वृद्धि के लिये विधालयों को उदार मन से दान दिया करते थे। और शिक्षा के पावन यज्ञ में उनकी यज्ञाहुतियों भी पडती रहती थी। उन दिर्नो न तो छत्रो से चन्दा वसूल किया जाता था ओर न ही अध्यापकों का पेट काठकर विधालय विकास किया जाता था। **^नसद्धशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेज्ञनिवानपि । प्रकृति यान्ति भूतानि, निह: कि करव्याति ।।* गानः वेदान्तिक व्यवस्था मँ शिक्षक ओर शिक्षार्थी गुरूकुल में ही रहकर विद्याध्ययन किया करते थे। ऐसी स्थिति में विद्यार्थी अध्यापक का प्रत्यक्ष या पयक्ष रूप म अब्युकरण करते ये । अतः अध्यापक की भाषा, रहन-सहन, व्यवहार आदि सभी बार्ते अनुकरणीय होती थी। शंकराचार्य जी लिखते दे ।- व व




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