इवान तुर्गेनेव पित और पुत्र | Ubah Tllypreheb Otubi Or Aeth Pomah

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Ubah Tllypreheb Otubi Or Aeth Pomah by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नहीं, ऐसी बहुत पुरानी तो नहीं। यही मैं भी सोचता था। पिछले जाड़ो में जब मैं तुम्हारे पास गया था तो उसे देखने का मौक़ा नहीं मिला । उसने कौन-सा विपय लिया है? “पदार्थ-विज्ञाव। यों वह हरफ़न मीला है। उसका इरादा अगले साल डावटर की डिग्री लेने का है।' “तो यह कहो कि चह चिकित्सा-विज्ञान का शभ्रध्ययन कर रहा है,” निकोलाई पेब्रोविच ने कहा श्रौर यह कहकर वह चुप हो गए। इसके बाद , तुरत ही , अपने हाथ से श्रागे दिखाते हुए बोले, उधर देखो प्योब , ये हमारे ही किसान है न?” प्योत्र से उस दिशा में देखा जिंधर मालिक ने इशारा किया था । संकरी देहाती गली में से श्रनेक गाड़ियां हचकोले खाती लपकी जा रही थी। बेलगाम घोड़े उन्हें खीच रहे थ्रे। हर गाड़ी में एक , या नि से अधिक दो, किसान बैठे थे। भेड़ की खाल के श्रपने कोटों के प्ले उन्होंने खोल रखे थे। हां मालिक,” प्योत्र से जवाव दिया। “ये कहां जा रहे है? नगर की ओर? “ “ऐसा ही मालूम होता है। बहुत सम्भव हैं , दारूघर जा रहे हों!” प्योत्र ने भौह चढ़ाते श्रौर कोचवान की शोर झुकते हुए कही सानो उसे भी यह साक्षी बनने के लिए उसका रहा हो । लेकिन वह हिला तर्क नहीं। वह पुरानी छाप का श्रादमी था और नये विचारों को श्रपने से हुर ही रखता था। हर “इस साल इन किसानों ने बुरी तरह तंग कर डाला है, अपनें पुर की भ्रोर मुड़ते हुए निकोलाई पेश्रोविच ने कहना शुरू किया । “अपना लगाम तक नहीं देते। न उन्हें उठाए बनता है, न रखते! के क्या तुम श्रपने खेत-मजूरों से सन्तुष्ट हो?” 2-34 १७




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