महाकवि पुष्पदन्त | Mahakavi Pushpadant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
321
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अध्याय
१ महाकवि पुष्पदत
अपभ्र श-परंपरा की पृष्ठभूमि--
संस्कृत---भारतीय साहित्य का श्रादि रूप हमें वेदिक साहित्य (२००० নিও
पृ० सें १००० वि० पू०) में प्राप्त होता है, जिसके प्न्तगंत वेदों की संहिताएँ,
ब्राह्मण, भारण्यक, उपनिषद् भादि पतिरहं । इस साहित्य में तत्कालीन जन-भाषा
का ही रूप निहित है । कालान्तर में उसी का प्रोढ़ तथा कला-समन्वित रूप पारिनि
(वि० पृ० ७ वीं शताब्दी) द्वारा परिष्कृत हो साहित्यिक संस्कृत के रूप मेँ परिनिष्ठित
हुआ । भागे वही रामायण, महामारत सरीखे प्रबंध-काव्यों में प्रस्फुटित होता সা
झश्वधोष, कालिदास, भारत, माघ, बाण भ्रादि कवियों का रचनाओं में चरम उत्कषे
को प्राप्त हुआ |
प्राक्ुत--वैयाक रणों द्वारा निरूपित सिद्धान्तों की कठोर सोमाशप्रों में बंध कर
सानिश्यक संस्कृत जन-भाषाझों से पृथक हो गयी । उधर सतत प्रवहमान जल-भाषा
सामान्य रूप से बिकसित होती हुई प्राकृत भाषाभ्रों के रूप में प्रकट हुई । यह समय
विक्रम से लगभग ६०० वर्ष पूर्व का था इसी समय प्राचीन वेद-आआह्य णों को मान्यताशों
की प्रतिक्रिया-स्वरूप वर्धभान महाबीर तथा गौतम बुद्ध ने क्मश: जैन तथा बौद्ध धर्म
के रूप में श्रपने-पपने सिद्धान्त प्रतिपादित किये। ये दोनों हो महापुरुष तत्कालान
जन-जागरण के भ्ग्रदूती के रूप मे भ्रवतरित हुए । उन्होंने जन-भाषा प्राकृत में उपदेश
दिये भ्रागे चलकर भशोक की धर्मोलपियाँ तथा दिलालेख भी उसो मे उत्कारं कराय
गये । देश-माषा के रूप में प्राकृत का यह विकास विक्रम की प्रथम शताब्दी तक
होता रहा । परन्तु उसके पश्चात् प्राकृत भी साहित्परिक रूपं धारण करने लगो तथा
झ्राचार्यों ने उसे सैडान्तिक रूढ़िया में बाँधना प्रारम्भ कर दिया ।
वररुचि के व्याकरणा-प्रंथ प्राकृत-प्रकाश् में प्रकृत के चार भेद मशराष्ट्री, मागधा,
घौरतेभी तथा पैशाथी बतलाये गये हैं। हेमचन्द्र ने इनमे चूलिका पेशाची तथा
प्रपश्रदा प्रौश सम्मिलित कर दिये ।* भागे चलकर ये षट् भाषाएं बड़ो प्रसिद्ध हुई ।*
(१) कुमारपाल चरित; हेमचन्द्र, प्रकाशक-भंडारकर पोरियंटत्र रिसर्च इस्टोट्यूट
पूना (१६३६) पाद टिप्पण पृ० ६३१
(२) मंख के श्री कंठ चरित में पट्भाषाझ्ं, का इस भ्रवार उल्लेख किया गया है--
प्राकृत संस्कृत मागध पिशाच भाषाश्च शौरसनोच
षष्ठो भ्रतर भूरिमेदो देश विकोषादुप्नश्षः । २।६२
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