न्याय - प्रदीप | Nyay - Pardeep
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम अध्याय | খু
अप्नि-लक्ष्य-में मिला हुआ है---अग्निसे उष्णता अलग नहीं की जा
सकती---इसलिये यह आत्मभूत छक्षण है । इसीतरह जीवका
चैतन्य, आदि लक्षण भी आत्मभूत हैं ।
जो लक्षण, लक्ष्यके स्वरूपसे पृथक् रहता है उसे
‹ अनात्मभत ' रक्षण कह दह । जैसे-किसी राही ज्म
छत्र चामर आदिक देखकर हम राजाकी पहिचान कर तो छत्र
चामर आदि राजाके लक्षण कहे जा सकेंगे, लेकिन छत्र
चामरोंका अस्तित्व राजासे जुदा है, इसलिये हम उन्हें अनात्मभूत
लक्षण कहते हैं | इसीतरह दण्डीका ट्ण दण्ड, धनीका लक्षण
धन, आदि अनान्मभूत लक्षण समझना चाहिये |
लक्षणाभास ।
जो चिह्र, रक्षणक रूपमे प्रयुक्त तो किया जाय, किन्तु
निर्दोपि रीतिसे रक्ष्यक्री पहिचान न छरा सके, उमे ' लक्ष-
णाभास ' कते ह । जैसे-गायका रक्षण सींग किया, तो यह्
लक्षणामस कहलाया । क्योकि-- सींग टक्षणतस्े गायकी पहिचान
नही हो सकती । सीग तो भैस आदि अन्य जानवरोके भी होते है,
हसचल्यि ये भी गाय कहने ल्गेग ।
लक्षणाभासके तीन भेद हैँ ( १) अव्याप्त (२) अतिन्याप्त
८ ३ ) असम्भवि । जिसमे अन्यापि दोप हो उसे अव्याप्त, जिसमे
अतिब्याप्ति दोष हो उसे अतिव्याप्त, और जिसमे असन्भव दोष
हो उसे असम्भवि लक्षणाभास कहते दै |
लक्षण रूपमे करे गये ध्मेका रक्ष्यके एक दिस्सेमे रहना
४ अव्याप्ति ' दोष है । नैसे-पशुका छक्षण सींग किया तो यहां
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