लोकभारती प्रकाशन | Lokbharti Prakashan

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Lokbharti Prakashan by सुनील गंगोपाष्याय - Sunil Gangopashyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ । ५, 5. व्ही मंत्रपाठ के पश्चात्‌ भल्ल धरती -पर लेटकर माथा टेककार प्रणाम ` 1 রদ संयोग के कारण, पानी का कृतज्ञता से प्रियूर्ण हो उल्ताहे। प्रवीणा ताली बजाकर कहने लगी, | मैंने कहा थीं ने । झैँने कहां थी ने ¶ क अपने दल-बल के साथ वुध्व जाना चाहता है) टल्‌ उस को यना करता है श दिया, ' अभी पत्थर सकलां बस्द क दोअ पशुओं कों में ले जाओ ४ वर्षा के कारण दो दिनों से पशु नहीं लगभग एक सौ गाय और क्िज्ञ-भिन्न जाति के भेड़ों को बाहर है निकाला गया । वीस-पच्चीस पुष उनके साथ चल दिये । सबके पास 1 त थोड़ी ही दूरी पर तदी के पार पर्याप्त स्थान से घासवन फैला हुआ ` हे इसी चासवन के कारण चुमक्कडं भनुष्यों का यह कबीलां स्थायी तौर की समाप्ति की ही कोई संभावना नहीं है সা: की छाती तर्कं ऊँची इस घास में एक प्रकार के बीज पैदा होते हैं । बीज धरती पर क्षः ॐ भोर उनसे तौ चास অল বা । द ~ - लेकिन इस घास में विपत्ति भौ है । उसमें अनेकानेक विषधर सर्र सृप छि रहते हैं। उन्हें खोज-खोजकर मारता पड़ता है लंबे सा




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