भाइयो और बहिनो | Bhaiyo Aur Bahino
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
177
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४ सितम्बर, १६४७
जे कक्ष गया था वेसे आज भी में चहाँ चला गया था, जहाँ हमारे मुसलमान
श्राश्रित ल्लोग रहते ই: | वहां कैम्प में जो गन्दगी थी बसी मैने देखी नहीं ।
में हिन्दुश्रों के केम्प में मी गया और मुसलमानों के कैम्प में भी गया। हिन्दुओं के
कैम्प दूसरी जगह हैं | मुस्लिम केम्पों में इतनी बदबू निकलती है, इतनी गनदगी है,
क्यों उसको नहीं साफ करते ? अगर में उस केम्प का कमांडर हूँ. तो में तो उसे
बरदाश्त नहीं करूँगा। में तो केम्पों में रहा हूँ, मेंने केम्प देखे हैं। कैम्प ऐसे गन्दे नहीं
रह सकते । मुफको बड़ा रंज हृश्रा । इतने सिपाही बने ह, इतनी मिकल्तिटरी पडी हे,
तो वे इतनी गन्दगी क्यों बर्दाश्त करते हैं ? वे कहेंगे कि सफाई करना हमारा काम
कहां है । हमको तो बन्दूक चलाने का हुक्म दै । यहां शान्ति रखने की हमारी डयुटी
है। वे आपसमें लड़ते हैं तो हम उनको बन्दूक से साफ कर देते) इतना दी हमको
हुक्म है, हुक्म के बाहर हम नहीं जा सकते । ठीक है, लेकिन वह हमारी मिल्िटरी है
हमारे वे सिपाही हैं । मेरी निगाह है कि उनके हाथ में एक कुदाली भी होनी
चाहिये । एक फावड़ा भी । कहीं भी मन्दगी हो उसे साफ करं । पिले पल उनका
काम सफाई होना चाहिये । कैम्प को श्रगर च्छा रखना है तो हमारे मुस्लिम ओर
हिन्दू भाइयों को खुद वहां सफ़ाई रखनी है। जेसे वे पड़े दें ऐसे द्वी पड़े रहें, उन्हें
हम कुछ न कह्दें तो दम उनके दुश्मन बनते हैं । अगर हम उनके दोस्त हैं, उनके
सेवक हैं तो हमें उन्हें साफ़ कददना है, आप यहां आये हैं, लाचार न बनें । अगर
पाकिस्तान से हिन्दू शरणार्थी थ्रा जायें तो क्या उनको कुएं में डाल दें। कया यहाँ
रक्खं नदीं श्रौर देखभाल न करं । हम उनको पेखा कँ कि श्राप दुखी हैं इसलिये
आप को भाड़ नहीं लगानी दे । यह चलने वाला नहीं है। आपको सफ़ाई करनी दै ।
हम आपको खाना भी देंगे पाग भी देंगे मगर भंगी नहीं देंगे । में तो बहुत कठिन
हृदय का आदमी हूँ।
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