ग्रामदान प्रचार, प्राप्ति और पुष्टि | Gramdan Prachar Prapti Aur Pushti

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Book Image : ग्रामदान प्रचार, प्राप्ति और पुष्टि - Gramdan Prachar Prapti Aur Pushti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रामदान * प्रचार (लोक-शिक्षण) १७ उठेगा ( विज्ञान वे इस युग में मनुष्प ऊपर उठना ही चाहता है, छेकिनि सरकार और समाज की रचना उसे उठने नही देती) वह्‌ वार-वार्‌ उठना चाहता है, और वार बार गिरा दिया जाता है, और जब वह गिर जाता है तो उसका ग्रिरा उसकी भालछायकी का प्रमाण बन जाता है, और डण्डे की शक्ति से उप्ते सुधारने का स्वाँग रचा जाता है । लेकित भय से कही गुण-विकास हो सकता है ? और, गुण विकास वे विना मनुष्य मनुष्य वन सकता है ? मनुष्य मनुष्य वी सहायता से मनुष्य बनेगा, डण्डे के जोर से नहीं । पडोसी को पडोसी की झवित मिल्ले और दोनो हाथ में हाथ मिलाकर जगे बटे, इसके बुनियादी योजना ग्रामदान-प्रखण्डदान में है, बल्कि वही उसका आधार है। ग्रामदान केवल सत्ता परिवर्तन नही है, उसमें समाज-परिवर्तेन है, चित्त-परिवर्तत है। लेकिन परिवतंन के लिए विसी व्यवित या समुदाय का सहार (एलिमिनेशन) नही है । (६) जीवन का सगठन सामुद्रिक बतुलो में--ध्यक्ति भौर गाव से कदर विश्य तझ । गाँव 'सहजोवन' को स्वाभाविक इकाई आज मनुष्य और मनुष्य के बीच अनेव दीवाले है---धन बी, धर्म वी, जाति बी, सम्प्रदाय वी, भाषा वी, क्षेत्र वी, जन्म बी, सस्द्ृ ति पी, यहाँ तक कि राष्ट्र भी एव जबरदस्त दीवाल हो है जो विश्व-मानव के विश्व- ह्वय को ऊपर नही आने दे रही है ।“एद ही राष्ट्र दे अन्दर स्वय सरकारने तरह-तरह की दीवा वना दी हं । শিলা, বত, হান হাজি, হিলি अशिक्षित, दछ और दल, आदि दीवाछे ही तो है, जिनके आपसी टकराव के भेंवर मे आदमी पडा हुआ है, और किसी मोटक लेकिन सकुचित मारे बे उन्‍्माद मे अपनी पाशविकता का भरदर्शन करने में ही अपने जीवन की मार्थगता मामता रहता है । गाँव जीविका और जीवन की स्वाभाविक इकाई है | इस बर्ुछ के भीतर परिवार है, उसने भो भीतर व्यवित, जो सबके वेन्द्र में है। व्यवित- रिवार-गाँव के बाद क्रमश सहकारी समाज में सहकार ये वर्तुल वदने




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