आधुनिक हिंदी साहित्य | Aadhunik Hindi Sahitya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23.69 MB
कुल पष्ठ :
141
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नादक २४१४ कि परमेदवर ने क्या सुरत है ये सँवारी सीता ने जिगर पै नेन कटारी मारी । अलबेली बाँकी तिरछी बिरछी चितवन । चलते में लचके कमर हिचकती कामन । श्रादि का प्रयोग करते हैं । ऐसे श्रौर श्रनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं । वास्तव में इन नाटकों में भटे गीत ऊटपटाँग श्रौर भ्रश्लील हाव-भाव-प्रदद्न श्र कुढंगे नाचों के भ्रतिरिक्त और कुछ नहीं रहता था । भारतेन्दु ने तभी तो इन नाटकों और नाटक- घरों की निन्दा की है । उन्होंने जनता की रुचि परिमाजित करने का भरसक प्रयत्न किया । परन्तु हिन्दी-रज्मंच की पूर्ण प्रतिष्ठा करने के लिए बे अधिक काल तक जीवित न रह सके । अ्रस्तु उन्नीसवीं शताब्दी उत्तराद्ध॑ के नाट्य्साहित्य का प्रधान उद्दश्य घामिक श्रौर सामाजिक सुधार एवं देश-प्रेम था । लोग नाच-गानों के लोभ से पारसी कंपनियों की श्रोर ्धिक आाकृष्ट होते थे । उन्हें इन्द्रसभा गुलबकावली जैसे नाटक ही रुचते थे । हिन्दी चाटककारों ने सोचा कि नाटक ऐसे होने चाहिए जिनसे मनुष्य के हृदय में बुराई से घृणा श्रौर भलाई से प्रीति उत्पन्न हो अथवा जिससे देदा में अ्चलित बुराई दूर श्र भलाई का प्रचार हो । जनता की रुचि को परितुष्टि के लिए उन्होंने अपने नाटकों में गाना-बजाना झादि तो पारसी खेलों के समान परन्तु उद्देश्य देशोपकारी श्रौर धर्मरक्षक रक््खा । अधिकांश में यह नाट्य-साहित्य प्रचारात्मक है। भारत की श्रद्धालु जनता ने उसी को श्रपनाया । उधर लीलाभों में मोरध्वज घ्रूव गोपीचन्द द्रोपदी शकुन्तला सीता-बनवास कंस एकादशी झादि का जनता में श्रत्यघिक प्रचार था । थे लीलाएँ भी बड़े ठाठ-बाट के साथ रज्मंच पर दिखाई जाने लगीं । रज़मंच पर प्रदषित युद्ध रावण या कंस-वध दुष्ट-दमन .. पातिब्रत धर्म भक्तों की कठिन परीक्षा प्रेम-लीला दुःख वेदना श्रादि बातों से जनता श्रत्यघिक प्रभावित होती थी यद्यपि उनमें कलात्मक अंश का प्राय अ्रभाव रहता था । घार्मिक और सामाजिक कुछ हृद तक ऐतिहासिक नाटकों श्रौर प्रहसनों से जनता का मनोरंजन हुआ । किन्तु लीलाशं और पारसी खेलों के प्रभावान्तगंत हिन्दी में उच्च कोटि के नाट्य-साहित्य की अधिक सृष्टि न हो सकी भाषा के सम्बन्ध में इतना. कहना ही काफ़ी होगा कि उन्नीसवीं शताब्दी उत्तराद्धं में हिन्दी भाषा में व्याकरण के नियमों का उल्लंघन श्रौर उसका झस्थिर रूप ... पाया जाता है । हिन्दी साहित्य में श्रालोच्य काल का महत्त्व विषयों की अझनेकरूपता भर नए-नए विचारों श्रौर भावों की उद्भावना में है न कि भाषा के लालित्य श्रौर सुघड़ स्वरूप में । दो दि लक
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