हारीत संहिता | Hareet Sanhita

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय, कुवैद्धनिंदा +” .... ~ ^ वैयका लक्षण: .... ति चैद्यकशाल्रकी पठनकी आवश्यकता रोग नहीं जाननेसे हानि वैयसांक्ताका फर रोगादिक जाननेकी आवश्यकता देरकारुमादिफ जाननेकी ` , आचस्यकता .... ४ .. रोगदेतु वातादि दोष ---- .... रोगपराक्षाकेः प्रकार साध्यासाध्यका: लक्षण ५००० साध्यादिक-दोनेका कारण . `“... उपद्रवका छक्षण .... ... .... रोग नि्ेछ. करनेकी आज्ञा. .... सूक्ष्म भी रोग शत्रुसमान है .... सोगके फैलनेके प्रथम ही प्रती- - कार करना ... . व्याधियोंका प्रकार तीनप्रकारके व्योधियोंका प्रकार - ज्वरकी व्यापकता .... जातिपरलंमेंज्वरकी अंसाध्यता ज्वरकी बलिछता ,,.. --- .:, मनुष्य ज्चर-सह सकता-है तिसका कारण १ ७७ सबरोगमें ज्वरकी श्रेष्ठंता - ..... प्रथक्‌ भणिमेदसे ज्वरके.नामान्तर एवरके स्वद्यका रक्षण . , ल्वरकी उत्पत्तिः ५, =: 7, व्वरकी निदामसदित संप्रा्ति श्वरे हेतु 7 ০০, अकट इए. न्वर्‌ रक्षणः ` ~, विंषयाडकमणिका- (११) प्रष्ठ; | विषय. पृष्ठ, , १७२ | ज्वरकी विशेषता .... १७९. ,„ | वातज्वस्में प्राचन .... . টা. ॐ - | पित्तञ्व्रका पाचन... -.. „~ १८९ १७६ | कफञ्वरमे पाचन. =, ৪ 4 संनिपातञ्वसमें पाचन ` `. ` +४ 3 ज्वरे -पथ्यः १७०० । न वीतन्यरका निदान जर चिविसा # | | वातञ्वरका पाचन. “` ** १८९० # | अन्नहीन जौषधका गुण ओर मु १७४ | निषेघधका विशेष वर्णन 22 ১ | पाचन हुए. औषघका लक्षण .... ॐ न उछलनेवाले-औषघका लक्षण .:.. -''ऋ ৮ | पाचन हनम शेष रहे जौषधका रक्षण » १७९ | मोजनके उपरत देनेके.ओषधका गुण १८२९ > | वातञ्वरमे-पचमूरुका काथ „^ ` ` ‰-` ° - ` | पित्तज्वरके निदान ओर चिकित्सा > त रोप्रादि জা **০* ` রী १ ८९ টু १७६ | शक्रीहादि काथ „^ ~~ न क्र : ५ |दुलमादिकाथ ~^ = ৯ %» ` | पित्तपापडा काथ... `` 1৯ 9 यादि काथः „.. ` ००० १८४ युड्च्यादि काथ {= ' ` = # द्राक्षादि' काथ । {ॐ + ` ,| दादतषामूच्छके ऊपर विदायाीदिरकोका ` ` ॐ. उपचार दाहज्वर्कःडपाय,.. ৯. १७८ `| ज्वस्शोष्कोः उपाय “~ „~ ` १८१९. > | कफञ्वरका- निदान ओर चिकित्सा `+ । ' 2 `: [कफञ्वरका- पाचन पिप्पस्यादि कस्कं + -, ` ' *१७९ | व्याध्यादि ` कल्क १८६ ` » [वासादि काथ .:১ ৮ 9




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