हरिऔध सतसई भाग 2 | Hariaudh Satasai Vol-ii

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Hariaudh Satasai Vol-ii by वेणीमाधव शर्मा -Venimadhav Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हरिओओोध-सतसई उसकी सकल विभूति को, देखें आँख ঘজাহ। भूले भी संसार को, कहें न हम निस्सार । श्राखें है पथरा गयीं , पढ़ पढ़ नाना म्॑थ। जिससे प्रभु का प्राप्ति हो , मिला नहीं वह पंथ। कान कान वह है नहीं , है वह काठ समान | जो सुन पाता है नहीं, गौरवमय गुणगान । पड़ प्रपंच में में नहीं। बनू पाप से पीन। मेरे मन को मथ सके , मन्मथ प्रभो कभी ন। मानस बनता ही रहे , पृत कृत्य का क्षेत्र प्रभु पद पंकज के बनें, चं चरीक ममनेत्र । कलप रहा हूँ ओर हूँ , अतिशय दुबेल दीन। विनय कान करते नहीं , क्या हो कान विहीन




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