बीजक | Bajiik

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५८ € ) मंडान है धरती ग्रसमाना । दसहुँदिसा वाकी फन्द्‌ है, जिव घेरे श्राना। जोग, जाप, तप, संजमा, तीरथ वत दाना । नौधा वेद कितेब है भूठे का নানা | काहु के बचनहि फुरे काहू करमाती। मान बढ़ाई जते र दिन्दू तुरक जाती । कर्हि कबीर कासों कहों, सकलो जग श्रन्धा साचा सों भागा, रटे का बन्दा ॥ इलयादि बी. प्र. २८६ । तीर्था के विषय में आप के ये विचार ই “तीरथ गये तीन जन, चित-चंचलमन-चोर । एकौ पाप न कारिय्ा, लादिन मन दस और” ॥ इसके आगे की यह साखी है “तीरथ गये ते बदिमुये, जडे पानि नहाय। कह हि. कबीर सन्तो सुनौ, राच्छुस हं पद्धिताय ॥ तीरथ भई विष बेलरी, रही जगन जुग दय । कबिरन & मूल निकंदिया, कौन हलाहल खाय ॥ बी० पृ० ४०१ | ईश्वर या खुदा को एकदेशी मानने वाले पाप कम से उतना नहीं डर सकते, जितना कि उसको सर्व व्यापक समभने वाले ढर सकते हैं; इसी कारण से इश्वर को से व्यापक बताते हुए एकदेशी समझने वालों के भ्रम को दूर करने के लिए यह कहा है कि “जा खुदाय महज़ीद बसतु है, भोर मुलुक केहि केरा। तीरथ मुरुत रामनिवासी दुहु में किन हुँ न हेरा ॥ पूरुव दिसा हरी को बासा. पच्छिम अलह मुकामा । दिल में खेजु दिलहि मे खाजो यहीं करीमा रामा॥ ৮ । अतः इस वचन पर यह आपत्ति लगाना कि यह उपासना स्थलों पर निष्कारण ৪ सूचना-यहाँ पर कबिरन शब्द इस (बीजक) ग्रन्थके संकेत से अज्ञा- नियों का वाचक है, कबीर-मतानुयायियों का नहीं; जैसा कि समाल्लाचना कर्त्ाओं ने समझ जिया है। यह आगे 'बीजक संकेत' प्रकरण में जितना जायगा |




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