श्वेताम्बर मत समीक्षा | Shwetamber Mat Samiksha

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Shwetamber Mat Samiksha by वशीधर पंडित -Vasheedhar Pandit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(15) भूखकी बेदना कितनी तीज्र दु खदायिनी होती है इसको किसी कविने अच्छे शब्दों में यों कहा है- आदौ रूपविनाशिनी कृशकरी क्वामस्य विध्वसिनी, ज्ञानभ्रशकरी तप क्षयकरी धर्मरुय निमू लिनी। पुजभ्रातुकलजभेदनकरी लज्जाकुलच्छेदिनी, सामा पीडति विङ्वदोषजननी प्राणापारी क्षुधा। अर्थात्‌ सु पीडित मनुष्य कहता दै कि भूख पहले तो रूप बिगाड देती है यानी मुख की आकृति फीकी कर देती है, फिर शरीर कृश (दुबला) क्रप देती है, काम वासना का नाश कर देती रै, भूख से ज्ञान चला जाता रै, भूख तपको नष्ट कर देती है, धर्म का निमू'ल क्षय कर देती हे, भूख के कारण पुत्र, भाई, पत्नी मे भेदभाव (कलह) हो जाता दै, भूख लज्जा को भगा देती है, अधिक कहाँ तक करें प्राणो का भी नाश कर देती है। ऐसे समस्त दोष उत्पन्न करने वाली क्षुधा (भूख) मुझे व्याकुल कर रही है|) भूखे जीव की क्या दशा होती है, इसको एक कविने इन मार्मिक शब्दो मेँ यो प्रगट किया त्यजेत्घुधार्ता महिला स्वपुत्र, खादेत्धुधार्ता भुजगी स्वमण्डम्‌ । बुभुक्षित किं न करोति णपं, क्षीणा नरा निष्करुणा भवन्सि।। यानी - भूख से तडफडाती हुई माता अपने उद्र से निकाले हुए प्रिय पुत्र को छोड देती ই। भूख से व्याकुल सर्पिणी अपने ही अडो को खा जाती है। विशेष क्या कटे भूखा मनुष्य कौनसा पाप नही कर सकता? (यानी-सभी अनर्थ कर सकता है क्योकि भूखे मनुष्य निर्दय हो जाते हे। एसी घोर दुखदायिनी भूख परिषह यदि केवलज्ञानी को वरेदनापन्न करे तौ फिर केवली का अनन्तसुख क्या कार्यकारी होगा? इसका उत्तः श्वेताम्बरी भाई देवें । भूख अपनी दुखवेदना केवली को भी आपके अनुसार कष्ट तो देती है, क्योकि आप उनके क्षुधापरीषह नाम मात्र को ही नही किन्तु कार्यकारिणी भी নললান ই। फिर जब कि केवली भूख की वेदना से दुखी होते है तब उनको पूर्णं सुखी बतलाना व्यर्थ है! वे हमारे तुम्हारे समान अल्पसुखी ही हुए। जैसे हमको भूख, प्यास लगती है, खा पी लेने पर शान्त हो जाती हे, आपके कटे अनुसार केवली कौ भीरेसी ही दशा रही। खात विलोकन लोकालोक, देश्वि कुद्रब्य भखे किमि ज्ञानी ? तथा अर्हत भगवान्‌ को समस्त लोक अलोक को हाथ की रेखा समान बिना उपयोग लगाये ही स्पष्ट जानने वाला केवल ज्ञान प्राप्त हो चुका रै जिमके कारण वे लोक मे भोजन के अन्तराय




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