भ्रमोच्छेदन | Bharamochchhedan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
37 MB
कुल पष्ठ :
646
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्मोच्छेदन ॥ १३
न न भज न+ ~ ৮৫ ৯সিম্পা্পি পানির পাসিসিণত পান্তা সস শপিপিসপিনপিস্পাপা জি বালা পাস সাপ স্পা সি
लक्षण त्पूण ्पुरुषात्(सवेंहुतात् ) सर्वेपूज्यात् सर्वेशक्तिमत: परब्रद्बण॒: ( च्छः ) ऋग्वेद:
( यजु: ) यज्ुकव्: ( सामानि ) खामपेद: ( छन्दांसि ) अथबेबेद्श (जज्ञिर ) चत्वारो
बेदास्तेनेव प्रकाशिता इति वेद्यम् । यद्द खबेहुत और यज्ञविशेषण पूर्ण पुरुष के हैं (तस्मात्)
अथात् जो सबका पूज्य सर्वोपास्य स्वेशक्तिमान् पुरुष परमात्मा है उसस्रे चारों वेद प्र-
काशित हुए दे इत्यादि से यद्टां बदों द्वी के प्रमाण से चार बेदों को स्वत:प्रमाण से सिद्ध
किया है यथपि यहां यज्ञ शब्द भी पृणे परमात्माका विरोपण हे तथापि जैसा मेंने अर्थ
किया द वैसा त्राद्यण में भी दे इस साक्षी के लिये { यज्चो तरे विष्णुः ) यद् वचन लिखा है
ओर जो आकद्वाण में मूल से विरुद्ध अये ड्वोता तो में उसका वचन साक्षी के अर्थ कभी न
लिखता जो इख प्रकार से पद्, वाक्य, प्रकरण भौर ग्रन्थ की खाकी भाकाङ्क्ता योग्यता
आखात्ति भौर तासपययै केएपक्षी राजाजी चौर स्वामी विशुद्धानन्दजी जानते बा छिखी
पृण विद्वान् की खवाकरके वाक्य भोर प्रकरण के शव्दाथे खम्बन्धों के जानने में तन मन
धन लगा के अत्यन्त परुषार्थ स्रे पढ़ते तो यथावत् क्यो न जान ठते # ॥
(रा०-प्ृष्ठों को कुछ उलट पलट किया तो विचि
पृष्ठ ८१ पड्कि ३ में लिखते हूँ कात्यायन ऋषि ने कद्दा दे कि मन्द्र ओर ब्राह्मण ग्रन्थों
गे ~
का नाम वेद है प्रष्ठ ५२ मेजिखतेरैप्रमाण ८ भौर फिर प्रष्ठ ५३ में लिखते हैं चौथा
¢ क ডি
शब्दप्रमाण आप्तों के उपदेश पांचवां एतिह्य सत्यवादी विद्वानों के कष्टे वा लिखे उपदेश
সি
त्र लीला दिखाई देती है आप
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तो आप के निकट कात्यायन ऋषि आप्र और सत्यवादी विद्वान् नहीं थे ) 1॥
এসি
र्वा०-इस का प्रत्युत्तर मरी बनाई ऋग्वदादिभाष्यमूमिका के प्रष्ठ ८० पङ्क
श्८ से लेक पृष्ठ ८८८ अठाखी तक में लिख रहा दे जो चाह स्तरो देख छेव और जो
वहां ( एवं तेनानुक्तत्वात्ू ) इस वचन का यही अभिप्राय है कि (मन्त्रतराद्यणयोर्वेद्-
नामधेयम् ) यह वचन कात्यायन ऋषि का नहीं है किन्तु किसी घृतराट् ने कात्यायन
ऋषि के नाम से बनाकर प्रसिद्ध कर दिया दे जो कात्यायन ऋषि का कट्दा होता तो
जज শিট ী শশা শশী শশা শিট টা পিপি
৬২
# प्रचिद्ध है |कि जो कोदों देके पढ़ते वे पदार्थो को यथावत् कभी नदीं जान
सकते ।
1 वे तो आप्त विद्वान् थे, परन्तु जिसने उनके नाम खे वचन रचकर प्रसिद्ध
किया बह तो अनाप्त अविद्वान् दी था |
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