जैन शास्त्रो की असंगत बातें | Jain Shastro Ki Asangat Baten

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Jain Shastro Ki Asangat Baten  by एच्छराज - Echchharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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অল হালা কী ললঘান बाते ! ह जानते है। ऋतुओ का बदछना, हवा का बदलना, वर्षा का होना और बदलने रहना आदि अनेऊ वान दै जिनको वतमान विज्ञान के बतलाये अनुसार यथाश्र उतरते देग्व रहे हे किसी श्रद्धालु श्रावक को जब एसी प्रत्यक्ष बातों पर झुकते और मरुजू होते देखत हे तो उपदेशक छोग चढ़ युक्ति पेश करते ह क्रि जिन शाह में इन विपया का विन्त वणन था, वे ( विच्छेढ ) छुप हो गये, चौदह पूत्र का जो तान वा, वद ( विच्छेद ) लुप हो गया, आदि। मगर হলনা অহ লহ (त्त बनता कि इन विषयों पर काफी लिखा भरा पढ़ा दे | सूपपस्नति, चन्द्रपपनति, सगवती, जीवालिंगस, पस्नयथा নাহি নন सूत्रम टन विपयापर का सिवा निन) [न्नी ड़ चोटी सी वात जो आज प्रत्यक्ष साबित ता रटी ६, इनसे नदी पाई जातीं। नहीं कया पाई जाती 9? অন सदी पद ववी सा यह उपर ठिम्ली बात॑ बहा से निउद्ध पड़ी । जिन शास्त्रों का अक्षर अक्षर सत्य होने छी কা না रही हैं, एक जक्षर को भी कम-ज्याद समनतने पर मन्ते ससार-परिध्रमण का नय दिखाया जा रदा है , ब्नमे লালা अगर प्रत्यक्ष के सामन यथार्थ ने इतर तो विदकर्शीड समन्त्य उाः यह फठब्य हो ज्ञाताडे फि इन शादास জন্ম কা কারু, इसकी परीक्षा परे । विज्ञान, दुक्ति, न्याय जोर तरझू ही उसाईी पर कस कर यवास जो सत्य उन, वसी पर जमद ऊरे। प्सतप्य का दिप्य बिघ्पन यत्ना चप्यद्ध ५{. ^.




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