आप्तमीमांसा प्रवचन भाग - 3, 4 | Aaptamimansa Pravachan Bhag - 3, 4

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Book Image : आप्तमीमांसा प्रवचन भाग - 3, 4  - Aaptamimansa Pravachan Bhag - 3, 4

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जल নি तृतीय भाग [११ । परातर शब्द ग्रठण किया है वह टिल्कुल युक्तिसमत है। पोदूगलिककर्म जो मूतिमान . हैं वे जीवके शञानाटिक्त भावके प्रावरणा वन प्रकते हु | ই जोवके পষ্ঠালা दोपकों' उपपत्तिं निभित्त कारणा ह प्रतत श्रावरश कमे न' माननेपर केवल प्रविधा घ तृष्णा शूप षदोष ही ससारका हेतु है, हसा कथन नि राङृह हो जात दै, देखो मद, कषराव सूति मात ही तो, उसकें द्वारा মু चेतनका श्रावरण किण गया है यह तो प्रत्यक्ष हो देखा पया है । यह तो शत्यक्ष ही देखा ज ता है कि काई पुरुष मदिरों पी लेह। हैं तो उसके ' सम्बधसे उस पुरुषको विश्रम पैदा होता है । उसका ज्ञान भी भ्रम भरा होता है। अट- पट बकृता है। उसे होश नहीं रहता । तो देखिये ! मूतिमान भीदराने उस पुरुषके शानपर, झावरणश कर दिया ता, इसी प्रकार मूतिमान पौद्गलिक्त ज्ञानावरण प्रादिक कर्मके निमितसे जीवक रागादिक दोष उत्पन्न होते हैं और वे भस्तारकी परम्परा ठाति ६ । यदि मूर्तमान पदार्थं वित्तका झ्ावरण करनैमें समर्थ न हो तब तो मदिरा पौनेके , वाद भी,पुरुषके ज्ञानमें दोष न पध्राना बाहिए। . ॥ सूत्तिमोन पौद्गलिक्र कर्मके द्वारा चेतन गुणकी आ्रावुतताकी सिद्धि-- ' पपिर काकार फटता है कि कि मदिरां सम्बन्धमेतो धात यह दै कि मदिरो গান ঘাতক द्वारा इन्द्रिय हो भर दृतकी गई है, चेतमे' प्रोत्माकी प्रावरणा गदी हूपरा है, इसके संम।धानमे कहते हैं कि पहः घात भ्रसम॑त 2 '। च्छ बनेलावो पि जिन धन्दरि योका म॑दिराकै दारां प्रावरणा मानते वे न्द्रयं क्याभरचेतन ह? हद्दरियकाः श्रयेत . मानतैपर मदिरा झांदिकफे द्वारा उपतका प्रादरणां होना सम्म नहीं हैः यदि प्रचेतन मदिरा 'भ्ेतत इन्द्रियका प्रावरणा करे, विक्षार करे, तो वह मर्दिरा'जिय बतैनमे रखी), है उससे तो घना सम्बन्ध हैं ना ? मीर्दि भी भंचेननत है भौर वे थाली कटोरा बोतल - प्रादिक भी भ्रचेतम हैं यदि प्रवेतन' मेदिरा भी भचेतन इन्द्रिमपद विकार करता है तो थाली, कटोरा, बोतल प्रादिक पदार्थमिं भी विकार क्यो नहीं फरता ? तो जैसे 'प्रचे- हम मर्दिदा भचेतेन थाली, कटोंरा, बोतल श्रादिकर्मे विश्वम' वैंदा मद्दी कर' सकता है हसी प्रकार प्रचेतन मदिरा इुन्द्रियपर भो धावरण नहो कर सकता । जिए मदिराके ५ हारा इच्द्ियाँ झाहत की गई, वे इन्द्रियाँ पदि चेतन हैं तो फिर यही वात तो पि ह कि जो ' चेतन होता दै निदैवयतः षह प्रमूत होता है 1 इन्दि हैं चेतन तो प्ाथ ही वे हो गयी भ्मूते तो भदिरों मूत्तिमानके द्वारा चेतन * प्रमुतंका ही प्रावरण छिद्ध हो गयां। यही बात प्रकृशमें घ्िद्ध कर रहे थे । तो यह बात घि्ध हो जाती है' कि ज्ञानावरण ग्ादिक पौदेगोलिक कम ह भौर वे মাস্ট कारणभूते है । तंव दोप की दानिक तरट्‌ पौकरणकी हीति मी कहोंपर विश्वेष रूपसे ' होती. है. भर्धात्‌ दोष प्रमाप्त होनेकी तरह भावरण री कहो समाप्त हो जाता है, तब दोबे द्वानि कही समस्त है जँते यह साध्य बताया इसो तरह प्रावरण हामि भी कही समस्ठ है यह भी साध्य बनता है। दोपते भिंप्त ानोवदण पादिक सुत्तिमान कम प्रमाणसे सिद्ध हैं, सावादिक दोप ये तो पेटनके परिशमन हैं प्लौर ज्ञानावरण पादिर चे হাতি पौदृगरिक +




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