शील निरूपण सिध्दान्त और विनियोग | Sheel Nirupan-siddhant Aur Viniyog
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
238
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दशि -निरूपण के जभारभूत सिद्धान्त
से इनकी अ्राँखें लड़ जाती हें और वह ग्राम-बाला जिससे इनका पहला प्यार था, भुला
दी जाती है। अच्त में त्रिभुज की दो भुजाओ्रों में से एक काट दी जाती है--श्रात्म-हत्या
या यक्ष्मा द्वारा और त्रिभुज कोण बन जाता है । इसी को श्राप चाह तो मौलिकता का
दृष्टिकोण कह सकते हैं । इसी तरह आज कल की नायिकाएँ शायर भी होती हैं, शेरनी
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भी और पालतू बिल्ली भी होती हें । तमाचे खूब खाती हैं, और फिर पछता कर जब
प्रेमी गाल मलता है (अपना) और प्रस्थान कर देता है, तो गाना गाने लगती हैं । न
मालूम इस रूड़े की रीढ़ कब टूटेगी ।
रील की सिद्धान्त-छूंलला बनायी जा सकती है, जिसे हम शील-निदान कह सकते
हैँ । वह यह है :--
(१) सजीवता ।
(२) निताच्त जामान्य लक्षण ने हो कर अधिकाधिक स्वलक्षण होना |
(३) मूल बन्धुत्व ।
(४) पिठरपाक विकास ¦
) म्रव्यभीक्ष्ण चिसमे-प्रणाज्च-दोप से मुक्ति!
) संरिलष्ट विविधता ।
) विकल्प-क्लिष्ट न हो कर संवेदन-सरल इोना ।
) हूप-प्रधाव की अपेक्षा संस्कार-प्रवान होना ।
) सत-भेद अथवा खंडित अभ्यन्तर |
शील की सजीवशा प्रभावोत्यादकता में नहीं, बल्कि प्रभावग्नराहिता में है। हिम-हुदय-
शुन््यमनस्कता वृत्तियों की, स्तब्ध-नीरबता शील की दृष्टि से व्यर्थ हैं । गुणों की आलस्य
गति और आलोक की साम्यावस्था में प्रलय है, जीवन नहीं । जीवन की गति अनुपात के
व्पूनाधिक्य में है। दुर्भिज्ञ म हाहाकार करते किसानों के वीच बैठे किसी प्र्थश्ञास्त्री के
मन की रूप दशा यदि ऐसी हो--अन्न नहीं होने से खाद्य समस्या बड़ी ही जटिल हो
जायगी और नेहुरू सरकार साम्यवादियों को निरुतर न कर बड़ प्रदाव करेगी। मुत्े इन
बेचारे किसानों से हमदर्दी है । निकट की नदी म॑ बाँध बँधवाने का अनुष्ठान कर दिया
जाता तो अच्छा । छोड़ो, कौच इस क्षमते सं पड़? किसानो, तुम हाथ पर हाथ धरे क्या
बेठे हो ? तुम्हें कुछ उद्योग करना चाहिये, कुश्च खोदो न्नौर खेत पटाओन्नो । यदि एसी
दशा होती तो, इसमे वृद्धि का अकाजश् भो है, करुणा का एक निर्वीयं वृद्बृद भी ভভলা ই
और आलस्य का हिम-उपल भी इस पर गिर पड़ता है । अनुपात के इस समान-धन ऋण
से शील का शून्य हाथ लगता है । ऐसा व्यक्ति गणेश तो होता है, पर गोबर का । सजीव
शील में अझहं, उपादान या आसक्ति और ग्रंथि की विविधता पायी जायगी। अपनी सौत
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