विदेश नीतियां | Videsh Nitiyan
 श्रेणी : अन्य / Others

लेखक  :  
                  Book Language 
हिंदी | Hindi 
                  पुस्तक का साइज :  
10 MB
                  कुल पष्ठ :  
246
                  श्रेणी :  
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)দি । विदेष नीति
| शीत দু के संदर्भ में विदेश नीति
(ম০76197 7১0110$ 800 (06: 007665% 01076 10011 पशा)
वैसे तो प्रत्येक देश की विदेश नीति भ्रनेक. बाह्य एवं ्रान्तरिक तत्वों
से प्रभावित होती है । उदाहरण के लिए देश का इतिहास, भौगोलिक स्थिति,
प्राकृत्तिक ल्लोत, औद्योगिक विकास, संनिक साम्यं, जनसंख्या का श्राकार,
सरकार का रूप, नेतृत्व एवं कूटनीति का प्रकार ्रादि तत्वों के हारा हीः एक
देश की विदेश नीति कोई विशेष रूप घारण करती है । वीसवीं णतांब्दी में
तकनीकी आविष्कारों की क्रांति ने जो स्थितियां पैदा की हैं उनमें विदेश
नीतियों का व्यवहार पर्याप्त बदला है। राष्ट्रों के शक्ति स्तर में श्रनेक
फेरबदल हो गये हैं । संसार की जनसंख्या बढ़ गई है ! इसके श्रतिरिक्त नीति
रचना की प्रणालियों में भी परिवतेन श्रा गये हैं। पहले व्यक्तिगत कुटनीति
का प्रभाव था किन्तु श्रब इसका स्थान सामूहिक कूटनीति ने ले लिया है।
प्रजातन्त्रात्मक शासन व्यवस्था में गुप्त रूप से किये जाने वाले सन्धि समभौतों
का स्थान खुली वार्ताश्रों के द्वारा ले लिया गया है। इस सवकं श्रतिरिक्त.जव
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सशस्त्र संघर्ष की बजाय शीत युद्ध छिड़ा तो अनेक
भ्रपू्व बातें सामने आई । शीत युद्ध की स्थिति में संसार स्पष्ट रूप दो गुटों में
विभाजित हो गया । एक ओर संयुक्त राज्य श्रमरीका के नेतृत्व में प् जीवादी
देश थे श्रौर दूसरी ओर सोवियत संघ के न तृत्व में साम्यवादी देश थे । दोनों
पक्ष एक दूसरे के विरुद्ध विषवमन करने के लिए हर सम्मव अवसर हूढ़ने
लगे । प्रत्येक निःशस्तरीकरण सम्मेलन में, संयुक्त राष्ट्रसंघ के मच पर, श्रन्य
विश्व सम्मेलनों में श्रथवा व्यक्तिगत रूप से वे एक दूसरे की श्रालोचना करने
में लग गये । दोनों पक्षों के प्रचार यन््त्रों का मुख्य उद्दे शय एक दूमरे के विरुव
लांछन लगाना वन गया ।
शीत युद्ध ने विदेश नीति पर उसके श्राघार, साधन, उद्देश्य एवं
परिणामों की दृष्टि से पर्याप्त प्रमाव डाला है; श्रब रिद्धान्तों एवं विचार-
घारा को विदेश नीति की दृष्टि से इतना अधिक महत्व दिया जाने लगा
जितना कि कभी भी नहीं दिया गया था। साम्यवादी देश जब अपने
विरोधियों की श्रालोचना करते तो उनको पू'जीवादी, साम्राज्यवांदी, उपनि--
वेशवादी, शोपण कर्त्ता श्रादि कहते । इसी प्रकार जब पूजीवादी देएें द्वारा
साम्यवादियों की श्रालोचना की जाती तो उनको प्रजातन्त्र विरोधी, हिसा का
समर्थक, दमनकारी, स्वतन्त्रता का शत्रु श्रादि कहा जाता । इस प्रकार विरोध
प्रकट करने का आ्राधार विचारधारा एवं सिंद्धांतों को बनाया गया । विदेश
नीति के साधनों में फेर बदल हो गयी । पहले जो कार्यं सैनिक शक्ति के
सहारे किया जाता था वह भ्रब प्रचार एवं राजनैतिक युद्ध के माध्यम से
दिया जाने लगा । पहले छोटे देशों को सेना को डर दिखा कर अपने पक्ष में 
किया जाता था किन्तु. श्रव उनको श्राथिकं सहायता की नीति श्रपना कर
प्रमावित किया जाने लगा। सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक आदान-अदान के
' माध्यम से देशो के सम्बन्धो को ` धनिष्ट वनाने का प्रयास किया जाने लगा |
सास्न।ज्यवद प्रौर उपनिवेशवादके नये रूप सामनेश्राये । परूजीवादी देश
 
					
 
					
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