मानव ह्रदय की घटनाएँ भाग २ | Manav Hriday Ki Kathaye Part 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
141
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एलेकजुँडर , श्रे
सरके साथ, जिसको संसार होनहार बताता था, इन्होंने मोहित हो विवाह
कर लिया था । जीवनमें छोगोंसे कैसी कैसी गलतियाँ हो जाती हैं !-
८ हम यहाँ कुछ देरके लिए रुक जाये तो अच्छा है, और इतने समयके
लिए, मेरे गरीब एलेकजैंडर, तुम उस बेंचपर सुस्ता सकते হী” घुद्धाने
अस्फुट स्वरसे कहा ।
कुछ-कुछ कौडोंसे खाई हृद यष्ट वैच कज-गरीके मोडपर, रक्खी हुई
थी, और इस ओर आते समय एलेकजेंडर संदेव यहाँ कुछ क्षणके छिए ठहरा
करता था।
बैंचपर बैठकर अब वह अभिमानपूर्वक, अभ्यस्त चेष्टाके साथ, अपनी
लंबी दादीको मुद्दीम भरकर, हाथको उसके सिरेकी ओर धीरे-धीरे खिस-
काने गा, और फिर वहाँ पहुँचकर थोडी देरके लिए रुका, मानौ पेटसे
छगाकर, वह उसकी बाढ नापना चाहता था।
छ ^ विवाह होनेके त মগ सहना मेरे लिए तो स्वाभाविक
और उचित भी हो सकता है; परंतु अच्छे एलेकजैंडर, उनका अनुमोदन
किस किए करते हो ” ॥
वुद्धाके उपयुक्त वाक्य सुनते ही उसने चॉककर केंघे हिलछाए और कहा
८ आह | मेरी बात पूछती हो मालिकन ९ ?”
चुद्धाने कहा--““ हो, और क्या । तुमको देखकर मुझे कई बार अचरज
हुआ है। मेरे विवाहके समय भी तुम उनके अर्दुी थे, और तब, उनकी
सव कुछ सदनेके अतिरिक्त, तुम्हारे पास कुच उपाय ही न था 1 परन्तु
उसके पश्चात् हमारे यहा एम किस कारण पडे रहे; हम तो वेतन भी बहुत
थोड़ा देते हैं और तुमसे बतांव भी बहुत घुरा करते है। तुम चाहते, तो
औरोकी भेति किसी स्थानपर बसकर विवाह भी कर सकते थे; और जब
तक तुम्हारे बाल-बच्चे भी हो जाते |
यह सुनकर उसने कहा--“आह सालिकन ! मेरी तो बात ही जुदा है।”
इतना कहकर वह छुप हो रहा; परन्तु हाथ उसका अब भी दाठीपर
वैसा ही चछ रहा था, जिसको देखकर ऐसा बोध होता था कि मानो
उसकी हद्यस्थ घटी बज रही है, अथवा उसको बजानेके लिए वह रस्सी
खींचनेका भयत्न कर रहा है 1 इस समय, आद्र पुरुषकी भति स
नेन्नोंसे चारों ओर देख रद्दा था | जे मे हे बलि
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