भू-प्रदक्षिण | Bhu-Pradakshina

Book Image : भू-प्रदक्षिण  - Bhu-Pradakshina

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यात्रा । ११ तीन बजे के समय जहाज़ ऐसी जगह पहुँचा जहाँ पर नहर एक भारी भोल से मिल गदं थी । इधर कई दिलों तक सूर्यदेव समुद्र ही मे अस्त हुआ करते थे, आज उनको मैं असीम 'सहारा?-मरुभूमि मे छोड़ गया । . दूसरे दिन तीन वजे के समय भील के किनारे इस्मालिया नगर के पास पर्हुचा । एक ते मरुभूसि के भोतर भारी कील, ओर फिर उसके किनारे एक छोटा सा सुन्दर नगर वसा हुआ--यह कुछ कम मज़े की बात न थी । पाँच बजे के समय, दूसरी ओर से आरहा और वाताविया की ओर जा रहा एक श्रालन्दाजी जदाज्ञ मिला । उस पर सब फौजी सिपाहीसवार थे। आज ही शाम को हमारा जहाज्ञ सईदबन्दर में पहुँच जाता, मगर कारन्टाइन के कारण उसे बन्दरगाह से दे मील के फासले पर ठहरने के लिए लाचार होना पड़ा । सवेरे हमारा जदाज्ञ सईद-बन्दर के नीचे जा लगा ¡ मैंने ऊपर डेक पर चढ़ कर देखा, समने भूमध्य-सागर था, वाद रार सुन्दर घन्द्‌- रगाह था | देखते , ही आनन्द से हृदय नाच उठा । मैने ञ्चे स्वर से, आनन्द के आवेश मे, कहा--“भगवन्‌, यह कैसा सुन्दर ओर अद्भुत दृश्य दिखलाया ! इस कंगाल पर इतनी कृपा ! तुम्हारी इस छोटी सी पृथ्वी पर जब ऐसे बड़े बड़े कारखाने भरे पड़ें चुए हैं तब सारे विशात्न ब्रह्माण्ड मे न जानें केसी केसी अपूरवे लीलायें भरी पड़ी होंगी /” | मेरा कलेजा भर आया । मुभसे न रहा गया । कैविन में इतर कर मँ जी भर कर रोया । ठंडक सी पड़ गई । माजन के बाद फिर डेक के ऊपर चदा! मेरा जहाज यहां कोयला लेने के लिए ७। ८ घंटे ठहरा । बन्दरगाह मे कितने ही देशों के तरह तरह के जहाज्ञ थे ! फरान्स के वेट, श्रालन्दाजी बोट, टकी के मनावार बेाट-तरह वरह के वोट खड़े थे । उन पर अनेक देशों के




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