गोसेवा | Goaseva

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Goaseva by राधेश्याम खेमका - Radheshyam Khemkaहनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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राधेश्याम खेमका - Radheshyam Khemka

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हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मौका: भोभ्य नमो शोध्य वपो पका जयो गोभ्य नमो पविश्वस््पः गोभ्य नमो गोभ्य ममो गोभ्य ममो भ्व नमो गोभ्य तथों शोभ्य नमो गोभ्य मेषो शोध्य तपो गोभ्य नमो गोभ्य সমী नमो गौध्य गोभ्य तप गोभ्य নদী गोभ्य जम णोभ्य तपो गोभ्य तपो गोप्य नभो চুষা नमो শীষ कमे चोष्य नमो वेष्य नमे गोभ्य ममो गोभ्य कपो गोभ्य तपो गोभ्य नमो पोष्य गोभ्य नमो गोभ्य नमो गोभ्य नमो गोष्व ममो गोभ्य नो गोभ्य नमो गोभ्य नपो गोभ्य नो गोध्य नमो गोभ्य नभो गोभ्व मपो गोभ्य नो गौभ्य नमो गोभ्य नपों गोध्य जपो गोभ्य रपो गोभ्य [श्रीमद्धगवद्रीतामे भगवान्‌ श्रीकृष्णने अर्जुनको अपने विश्वरूपका द्धन कराया! सम्पूर्णं विभूतियोसहितं चराचर जगत्‌, त्रिधुवन-त्रैलोक्य और सारे देवी-देवताओके दर्शन अर्जुनकों भगवान्‌ श्रीकृष्णमे हुए। अपने शास्त्रेके अनुसार हिन्दूर्ममे वैंतीस करोड देवा माने गये हैं। सम्पूर्ण विश्व--चराचर-जगत्के जड-चेतन सभी अवयवोके अधिष्ठातु देवता होते हैं और इन सभी देवी-देवत्ताभोका निवास गौ मातामे होनेके कारण गौ विश्वरूप है । इतना ही नी! यहोतक कहा गया है कि गावो विश्वस्य मातर ' अथात्‌ गाय चराचर जगद्‌की माता है यानी अखिल विश्वका आधार गौ माता ही है। यही कारण ह कि केवल गौकी पूजा एव सेवसे सम्पूर्णं देवी-देवताओका आराधन हो जाता है। अत्र यहाँ वेदौ, स्मृतियो तथा पुराणोमे उपलब्य गौके विश्वरूपका वर्णन प्रस्तुत किया जा रहा है, साथ ही गोमहिमा और गीसेवाकी महिमाका भी विग्दर्श कराया गया है--सम्पादक 7 गौका विश्वरूप [सर्वे देवा स्थिता देहे सर्वदेवमयी हि गौ ] वेदोमे प्रजापतिश्च परमेष्ठी च शृ इनदर शिरे अम्नर्ललाट यम कृकाटम्‌॥ सोमो राजाः प्रस्तिष्को दौरुत्तरहनु पृथिव्यधरहनु ॥ विद्युजिह्म मरुतो दन्ता रेवतीग्रीवा कृत्तिका स्कन्धा घर्मो वह ॥ विश्व वायु स्वगो लोक कृष्णद्ग विधरणी निवेष्य ॥ श्येन क्डोऽन्तरिक्ष पाजस्य वहस्पति ककुद्‌ बहती कीकसा 1 देवाना पत्री पृष्टय उपसद पर्शव ॥ पत्रश्च वरुणश्चासौ त्वष्टा चार्यमा च दोषणी महादेवो चाहू॥ इन्द्राणी भसद्‌ वायु पुच्छ पवमानो वाला ॥ ब्रह्म च क्षत्र च श्रोणी बलमूरू॥ प्रजापति ओर परमेष्ठी इसके (मौके) सौग, इन्द्र सिर अग्नि ललाट ओर यम गलेको सधि है। नक्षत्रोके राजा चंद्रमा मस्तिष्क, चुलोक ऊपरका जबडा और पृथ्वी नीचेका जबडा है। बिजली जीभ, मरुत्‌ देवता दाँत, रेवती नक्षत्र गला, कृत्तिका कधे और ग्रीष्म क्तु कधेकी हड्डी है। वायु देवता इसके समस्त अङ्ग है, इसका लोक स्वर्ग है ओर पृष्ठवशकी हड्डी रुद्र है। श्येन पक्षी (बाज) इसकी छाती, अन्तरिक्ष इसका बल, बृहस्पति इसका कूबड और बृहती नामके छन्द इसकी छातीकी हड्डियाँ है। देवाड्रनाएँ इसकी 'पीठ और उनकी परिचारिकाएँ पसलीकी हड्डियाँ है। मित्र ओर वरुण नामके देवत्ता कथे हे, त्वष्टा ओर अर्यमा हाथ हैं तथा महादेव इसकी भुजाएँ हैं। इन्द्रपत्ती इसका पिछला भाग दै, वायु देवता इसकी पछ ओर पवमान इसके रोय हैं। ब्राह्मण और क्षत्रिय इसके नितब और बल जाँघे हैं। धाता च सविता चष्ठीवन्तौ जङ्घा गन्धर्वा अप्सरस कुष्ठिका अदिति शफा ॥ चेततो हदय यकृन्मेधा অল पुरीतत्‌॥ कुतकुक्षिरिरा वनिष्टु पर्वता प्लाशय ॥ विधाता और सविता घुटनेकी हड्डियाँ हैं. गन्धर्व पिडलियाँ, अप्सराएँ छोटी हड्डियाँ और देवमाता अदिति खुर हैं। चित्त हृदय, बुद्धि यकृतू और त्रत हौ पुरीतत्‌ नामकी नाडी है। भूख ही पेट देवी सरस्वती आँते और पर्वत भीतरी भाग है। क्रोधो ` वृक्कौ मन्युराण्डौ प्रजा शेप है नदी सूती वर्षस्य पतय स्तना स्तनयिलुरूथ ॥ विश्वव्यचाश्चर्मौपषधयो लोमानि नक्षत्राणि रूपम्‌॥




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