महावीर जयंती स्मारिका , अंक 23, 1986 | Mahaveer Jayanti Smarika Ank-23, 1986

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भगवान महावीर की 2584वीं जयन्ति सम्पूर्ण भारतवर्ष में उत्साह और उमंग से मनाई जा रही है। अपने माता पिता के साये में वर्धभान ने परम्पराओों को तोड कर स्वयं ने श्रपना मार्ग प्रशस्त किया, वे सक्ष्मदर्शी तत्वशिल्पी थे। अपनी साधना के माध्यम से महावीर स्वामी ने प्राणी मात्र की रक्षा का मार्ग जन जन को दिखाया । भगवान महावीर निम्रेन्य बने, बाह्य एवं अन्दर की ग्रन्थियों का खोला तथा श्ररिग्रह का मार्ग अपने जीवन में उतारा । उनका सम्पूर्णा जीवन अहिसा एवं अनेकान्त का दर्शन बन गया । भीषण परिस्थितियों में भी वे विचलित नही हुये । महावीर का काल आ्राज की परिस्थितियों से श्रांका जा सकता है | श्राज देश और विदेश में भ्रांतकवादी प्रवत्तियों ने मानव को फकभोर दिया है । चलते फिरते मानव ग्राज डरा हुआ है, वह नहीं जानता सुबह घर से निकलने के पश्चात सायंकाल अपने परिजन तक पहुचेगा या नहीं । पजाब में हिसा का ताण्डव गत वर्षो में जो हुआ इसकी परिकल्पना महावीर के देश में अहिसा वादियों को कचोट रही है । हमारा देश एक और 21सवी सदी में प्रवेश की तैयारी में जुटा हुआ है दूसरी श्रोर यह ड़र लगा हुआ है क्या आज का व्यक्ति 21वीं सदी देख भी पायेगा । पडौसी राष्ट्र दूसरे शक्ति शालीशाली राष्ट्रो की सहायता से युद्ध के लिये हथियार जुटा रहे है, शक्ति को आंकने के लिये भीपरा अ्रणु और परमाणु वमों की तेयारी हो रही है । आ्राज तक तैयार आधुनिक हथियार सारे विश्व को 27 बार नष्ट-अ्रष्ट करने की शक्ति रखते है | क्या ऐसेमें ही विश्व शान्ति हो सक्केगी । करोड़ों मूक पशु पक्षियों का वलिदान प्रतिदिन हो रहा है और श्राहिसा के पजारी चुप वठे हैं । यह देश ऋषि और मनीपियों का देश है, किन्तु आज कोई अपनी आत्मशक्ति से हिसा को नही रोक पारहा है। ऐसे में श्राज फिर एक श्र महावोर के जन्म की श्रावश्यकता है । आइये श्राज इस पावन जन्म जयन्ति के अवसर पर सत्य, अ्रहिसा, अ्रचीर्य अपरिग्रह और ब्रह्मचय जैसे श्रणुत्नत ही अपनाल । विश्व में सह श्रस्तिव का पाठ फिर से पारम्भ कर मानव मूल्यों को पुनः स्थापित कर। यही सार महावीर जयन्ती का हैं सकता है । |




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