जेल के वे दिन | Jail Ke Ve Din
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विजयालक्ष्मी पंडित -Vijayalaxmi Pandit
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६
सकते | अब पीछे पैर रखना उचित नही होगा । अब तो
इसी तरह अन्त तक बढ़ते जाना होगा। चाहे परिणाम
जो मी छे 1” उसका कथन सर्वेथा समीचीन था। हम-
छोगोंको अन्ततक आगे बढ़ते ही जाना है। यही सोचते-
सोचते मुझे नीद् आ गयी।
१३ अगस्त १९४२
नीद् खुलते ही स॒ुझे लड़कियोंकी चिन्ताने फिर आ
घेरा। मेरे सिरका दर्द ज्योंका त्यों वना था इसलिये में
विस्तरे पर तव तक लेटी रही जब तक हछुम्वरदारिन
झाड्ट देने नही आयी।
पुराने परिचित चेहरे कम ही रह गये हैं. और नये
मुझे इस तरह देखते है मानों में अजायब घरकी वस्तु
हैं। न तो पानीका कोई प्रवन्ध है और न सफाईका।
कहीं कुछ भी नही है। में आँगनमे प्रायः आधे घण्टे तक
उहलती रही । इसके बाद फेदियोंके नहानेकी यड्डीमेंसे
पानी लेकर झुंह थोया। करोव सात वज्ञे जमादारिनते
आकर कहा--“कहिये तो अपने घरसे चाय ला दूँ क्योकि
২০ बज्ेेसे पहले जेलसे कोई सामान नहीं मिल सकेगा।
सुझे इससे चाय लेनेकी इच्छा तो नही थी केकिन सिरमें
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