श्री श्रीचैतन्य - चरितावली भाग - 3 | Shri Shrichaitanya Charitavali Bhag - 3

Shri Shrichaitanya Charitavali Bhag - 3  by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीहरिः নন রভা তা वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात्‌ पीतास्बराद्रुणबिस्बफलाधरोष्टातू । पूर्णन्दुसुन्द्रमुखाद्रविन्दनेत्रात्‌ कृष्णात्परं किमपि त्वमहं न जाने ॥ प्यारे ! तुम्हारे चतुर्भुज, घड़भुज, अध्भुज और सहखभुज आदि रुप भी होंगे, उन्हें में अखीकार नहीं करता । अखीकार करूँ तो तुम्हारी खतन्त्रतामे बाधा डाछ्नेका एक नया अपराध मेरे ऊपर বা जायगा | इसलिये बे रूप हों या न भी हों उनसे मुञ्चे कोई विशेष प्रयोजन नहीं | मुझे तो तुम्हारा वही किशोरावश्थाका काला कमनीय रूप, वही मन्द-मन्द मुसकानवाला मनोहर मुख, वही अरविन्दके समान खिले हुए नेत्र, बही मुरलीकी पदञ्चम खरबाली मधुर तान ओर वहीं पीताम्बरका छटकता हुआ छोर ही अत्यन्त प्रिय है | प्यारे | अपने इसी रूपसे तुम इस दासके मन- मन्दिरमे सदा निवास करते रहो, यदी इस दीनकी एकमात्र प्राथना है । 1 38:56




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