श्री श्रीचैतन्य - चरितावली भाग - 3 | Shri Shrichaitanya Charitavali Bhag - 3
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
35 MB
कुल पष्ठ :
406
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीहरिः
নন রভা তা
वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात्
पीतास्बराद्रुणबिस्बफलाधरोष्टातू ।
पूर्णन्दुसुन्द्रमुखाद्रविन्दनेत्रात्
कृष्णात्परं किमपि त्वमहं न जाने ॥
प्यारे ! तुम्हारे चतुर्भुज, घड़भुज, अध्भुज और सहखभुज आदि
रुप भी होंगे, उन्हें में अखीकार नहीं करता । अखीकार करूँ तो तुम्हारी
खतन्त्रतामे बाधा डाछ्नेका एक नया अपराध मेरे ऊपर বা जायगा |
इसलिये बे रूप हों या न भी हों उनसे मुञ्चे कोई विशेष प्रयोजन नहीं |
मुझे तो तुम्हारा वही किशोरावश्थाका काला कमनीय रूप, वही मन्द-मन्द
मुसकानवाला मनोहर मुख, वही अरविन्दके समान खिले हुए नेत्र, बही
मुरलीकी पदञ्चम खरबाली मधुर तान ओर वहीं पीताम्बरका छटकता हुआ
छोर ही अत्यन्त प्रिय है | प्यारे | अपने इसी रूपसे तुम इस दासके मन-
मन्दिरमे सदा निवास करते रहो, यदी इस दीनकी एकमात्र प्राथना है ।
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