भास तथा हर्ष के उदयन चरितात्मक रूपकों में नारी पात्रों का तुलनात्मक अध्ययन | Bhas Tatha Harsh Ke Udayan Charitatmak Rupakon Men Naree Patron Ka Tulanatmak Adhyayan

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Bhas Tatha Harsh Ke Udayan Charitatmak Rupakon Men Naree Patron Ka Tulanatmak Adhyayan  by कुमारी प्रतिभा - Kumari Pratibha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1- चन्द्रधर गुलेरी, 1^.3/11-52 ए? 2- 1.0.7.5.7. भास नाटक चक की एक ही नाटक समझकर उन्होनें भी भूल की है। होता है कि आलोचकों को इन नाटकों की जानकारी थी और वे इन से उद्धरण देने को प्रस्तुत थे। इसका अर्थ यह है कि वे इस मत को स्वीकार करते थे कि ये नाटक एक महान लेखक द्वारा प्रणीत हैं। भास को स्वप्नवासवदत्ता का कर्ता बतलाया गया है। यदि अन्‍्तः साक्ष्य का समर्थन प्राप्त हो तो उन्हें शेष नाटकों का रचयिता मानने का अधिकार हमें मिल जाता है। एेसा साक्ष्य उपलब्ध है, भास के कर्तृत्व मे संदेह करने वाला के द्वारा भी यह अस्वीकार नही हेँ। उनकी प्रविधि मे, प्राकृतो मे, छद मे, ओर शैली मे समरूपता हँ । अंततः थारूदत्त का साक्ष्य है । यह निःसन्देह ओर स्पष्टतया मृच्छकटिकम्‌ आदि का रूप है| अतएव इससे यह सिद्ध होता है कि भास के नाटक उस कृति की अपेक्षा प्राचीनतर है जो वामन को भली -्भोति विदित थी, ओर जो निश्चय ही बहुत प्राचीन हैं । प्रामाणिकता के विरूद्ध दिये गये सब तर्क अनिश्चायक हैं। उनका आधार यह तथ्य है कि जहो तक नाटक के आमुख के रूप का प्रश्न है, सातवीं शती ई. के महेन्द्र | विकृमवर्मा के मत्तविलास रूपक में वे ही विशेषताएं दिखाई देती हैँ जो भास के नाटकं मे की पाई जाती हैं | दूसरा आधार यह सुझाव है कि राजसिंह का उसी नाम के दाक्षिणात्य राजा | लगभग 675 ई0 | से तादात्म्य होना चाहिए। यह साक्ष्य स्पष्ट ही अपर्याप्त है भास स का यश उत्तर की अपेक्षा दक्षिण में अधिक फैला हुआ था, क्‍योंकि वहाँ की जननाटय ५ या रंगशालाओं मेँ भास कें एक नाटक का एक दृश्य खण्डितं रूप मं बच रहा हे, यह समझना. आसान हैं. कि सातवीं शताब्दी के कारण बहुत आंशिक हैं | नाटककार व नाटक के नाम के त्याग का अनुसरण नहीं किया गया है | यह बात का निश्चित संकेत है ও मत्तविलास बहुत बाद की रचना है । उक्त राजा की अभिन्नता के सम्बन्ध मे किये ग |




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