प्रेमी भक्त | Premi Bhakt

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Premi Bhakt by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भक्त विल्वमद्गल ११ लिये फक्ीरोका वाना लिया और आँखोंमें काँटे चुभाये, वह बालक वही है, परन्तु उस गोप-ब्राल्कने उसके हृदयपर इतना अधिकार अदृश्य जमा लिया कि उसको दूसरी वातका सुनना भी अस् हो उठा । एक दिन विल्यमद् मन-ही-मन विचार करने लखा कि सारी आफतें छोड़कर यहांतक आया, यहाँ यह नयी आफत आ गयी। संके मोहसे छूठा तो इस वाल्कने मोहमें बेर लिया' यों सोच ही रहा था कि वह रसिक वारक उप्तके पास आ बैठा और अपनी दीवानी वना देनेवाटी वार्णसे बोला, बावाजी | चुपचाप क्या सोचते हो ? इृन्दावन चलोगे वृन्दावनका नाम सुनते ही व्रित्वमह्रल्का हदय हरा हो गया परन्तु अपनी असमर्थता प्रकट करता हुआ লীজা कि भैया, मै अन्धा वृन्दावन कैते जाऊं ४ बाठ्कने कहा, धह ठो मेरौ ठी, में इसे पकड़े-पकड़े तुम्हारे साथ चलता हूँ , विल्वमद्ठठका मुख खिल उठा, छाठी पकड़कर भगवान्‌ भक्तके अगे-आगे चलने छो | धन्य दयालुता ! मक्तकी छाठी पकड़कर मार्ग दिखाते हैं | थोड़ी-सी दूर जाकर वालकने कहा, छो | वृन्दावन आ गया, अब मैं जाता हूँ ॥ त्रिल्वमद्नखने वाख्कका हाथ पकड़ ढिया, हाथका स्पर्श होते ही सारे शरीरमें त्रिजलै-सो दोड़ गयी, सात्विक प्रकाशसे तारे द्वार प्रकाशित हो उठे, विल्वमज्नलने दिव्य दृष्टि पायी और उसने देखा कि वालकके रूपमे साक्षात्‌ भरे ध्याममुन्दर ही हैं । विल्वम्नठका शरीर रोमाश्वित' हो गया,




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