प्रेमी भक्त | Premi Bhakt
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
128
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भक्त विल्वमद्गल ११
लिये फक्ीरोका वाना लिया और आँखोंमें काँटे चुभाये, वह बालक
वही है, परन्तु उस गोप-ब्राल्कने उसके हृदयपर इतना अधिकार
अदृश्य जमा लिया कि उसको दूसरी वातका सुनना भी अस्
हो उठा । एक दिन विल्यमद् मन-ही-मन विचार करने लखा
कि सारी आफतें छोड़कर यहांतक आया, यहाँ यह नयी
आफत आ गयी। संके मोहसे छूठा तो इस वाल्कने मोहमें
बेर लिया' यों सोच ही रहा था कि वह रसिक वारक
उप्तके पास आ बैठा और अपनी दीवानी वना देनेवाटी
वार्णसे बोला, बावाजी | चुपचाप क्या सोचते हो ? इृन्दावन
चलोगे वृन्दावनका नाम सुनते ही व्रित्वमह्रल्का हदय
हरा हो गया परन्तु अपनी असमर्थता प्रकट करता हुआ লীজা
कि भैया, मै अन्धा वृन्दावन कैते जाऊं ४ बाठ्कने कहा,
धह ठो मेरौ ठी, में इसे पकड़े-पकड़े तुम्हारे साथ चलता हूँ ,
विल्वमद्ठठका मुख खिल उठा, छाठी पकड़कर भगवान् भक्तके
अगे-आगे चलने छो | धन्य दयालुता ! मक्तकी छाठी पकड़कर मार्ग
दिखाते हैं | थोड़ी-सी दूर जाकर वालकने कहा, छो | वृन्दावन
आ गया, अब मैं जाता हूँ ॥ त्रिल्वमद्नखने वाख्कका हाथ पकड़
ढिया, हाथका स्पर्श होते ही सारे शरीरमें त्रिजलै-सो दोड़ गयी,
सात्विक प्रकाशसे तारे द्वार प्रकाशित हो उठे, विल्वमज्नलने दिव्य
दृष्टि पायी और उसने देखा कि वालकके रूपमे साक्षात् भरे
ध्याममुन्दर ही हैं । विल्वम्नठका शरीर रोमाश्वित' हो गया,
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