इलाहबाद के अंसारी समुदाय | Changing Canvas Of Ansari Community

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Changing Canvas Of Ansari Community by शीला कुमारी - Sheela Kumari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब्राहमण तथा क्षत्रियो को हल चलाना मना था तथा रात-दिन युद्ध में वे लगे रहते थे। लूट का माल उनकी रोजी का साधन था लेकिन इस्लाम में मेहनत तथा हलाल की सम्पत्ति को जायज कहा गया है। अतः उन्होंने नव मुस्लिमों को भी कपड़ा बुनने का काम सिखा दिया क्योंकि हजरत अबु अय्यूब के खानदान के लोग कपड़ा बुनने का काम करते थे। इन नव मुस्लिम कपड़ा बुनने वाले भारतीय मुसलमानों को दूसरे लोग जुलाडा, काश्तकार और दहकान नामों से पुकारने लगे। इन्हें इस नाम से न पुकारा जाय इसके लिये इनकी खास नाम अर्थात्‌ मदद करने वाले नाम अन्सार से इनको पुकारा जाय। इसी लिये इन कपड़ा बुनने वालों को अन्सार कहा गया। आगे चलकर यह नाम अन्सारी हो गया। अन्सारी शब्द की व्याख्या कुछ लोगों ने गलती से यह समझ लिया कि यह शब्द फारसी शब्द है किन्तु वास्तव मेँ यह शब्द संस्कृत का है। यह निम्नलिखित बातों से सिद्ध हो जायेगा - (क) एशिया में जब आर्य जाति भारत में आकर बसी थी तो उन्हें अपनी सारी आवश्यकताओं को स्वयं पूरा करना पड़ा था। इस लिये उन्होने स्वय कपटो की बुनाई की जैसा कि ऋग वेद के पढ़ने से प्रकट होता है। इस सम्बन्ध में बंगाल के प्रसिद्ध विद्वान सी0आर0दत्त ने अपनी पुस्तक प्राचीन भारत (अध्याय- 3) में विस्तार पूर्वक वर्णन किया है। एच0 एच0 विल्सन ने इंगलिश अंग्रेजी संस्कृत डिक्शनरी में लिखा है कि जोलाहा संस्कृत का शब्द है।जो जल + आहा 5 जोलाहा। जल का अर्थ हैं भष्म करना और आहा क अर्थ है बोलना । पुराने जमाने में ब्राम्हण जिस व्यक्ति पर आवश्यकता से अधिक क्रोध में होते थे तो उसकी 'भष्म हो जा' कहकर श्राप दे देते थे। इस प्रकार जुलाहा ब्राम्हणों द्वारा नामा दिया गया। (ख) जुलाहा के बारे में एक दूसरी कहानी प्रसिद्ध है। इस कहानी के लेखक गाजी महमूद वहरम पाल हैं जो सेस्कृत भाषा विशेषकर वेदों के ज्ञाता माने गये हैं। वे लिखते हैं ऐसा कहते हैं कि किसी समय में इन्द्रप्रस्य जिसे आजकल दिल्ली कहते है मँ एकं राजा राज्य करता था जिसकी नाम राजा मजी था। यह राजा बड़ा घमण्डी था। खड़े -खडे ही मूत्र आदि करता था ओर निवृति के बाद मिट्टी या पानी का प्रयोग न्दी करता था । दिन मेँ कोई पोशाक नहीं पहनता था । इन्द्रप्रस्थ के एक मुहल्ले मे एक योगी रहता था जिसका नाम जल आदू था जो कपडे भी बुनता था उसने उसे कपड़ा पहनना तथा बुनना सिखाया । खुरशीद अहमद अगे लिखते है- हयाकता का अर्थं है कपडे बुनना । कु स्वाथी लाग इस पशे कौ गिरी




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