नागरिक जीवन | Nagrik Jeewan

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Nagrik Jeewan by कृष्णानन्द गुप्त -Krishnanand Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(२) अच्छे अस्पताल चाहिए। टैक्स का रुपया इसौ कामे खर्वः होगा। सरकार उसे अपने पास नहीं रक्खेगी। और न अपने. किसी कास में खचचे करेगी । बल्कि भ्रान्त की सावंजनिक उन्नति फे জানা ক জিত হী অই উল लगाया जा रहा है । उससे अस्पताल वगैरह तो खुलेंगे ही, साथ ही छोटी तनख्वाह पाने वाले चौकी- दारों, चपरासियों वग्गेरह की तनख्वाहें भी बढ़ायी जायेंगी 0? परन्तु दूसरे दल के मैम्चर बिल का विरोध कर रहें हैं । जिन लोगों की तरफ़ से वे काउन्सिल में गये हैं, उनकी तरफ़ से उनका कहना है कि (सरकार को यदि रुपया चाहिए तो हमे इससे सतल्ब ? हम टेक्स क्यों दें ? ल्ञोगों की चनख्याहें बढ़नी चाहिए स कि घटली | सरकार को यदि अस्पताल खोलने हैं, अथवा छोटी तनख्वाहें पाने वाले नोकरों की तनख्याहें बढ़ानी हैं तो वह दूसरी मद्द में खचा कम करके अपना वजट पूरा क्यों नहीं करती । चह हमारा लुक़सान क्‍यों करती है? यह तो बही हुआ कि कल्लू के फ़ायदे के लिए मल्लू की गदन पर छुरी फेरी जाय | हम यह टैक्स देने को तैयार नहीं हैं। और यदि सरकार ने यह टैक्स लगाया तो हम सब मिलकर उसका विरोध करेंगे । यह विल्ल काउन्सिल में पेश है ओर चूँ कि बहुसत उसके पक्त में है, इसलिए आशा की जाती है कि थोड़े से संशोधन के साथ वह पास हो जायगा।




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