भाषासार संग्रह भाग 1 | Bhashasaar Sangrah Bhag 1

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Book Image : भाषासार संग्रह भाग 1 - Bhashasaar Sangrah Bhag 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र । € द्विन्दो के लिये ता बाबू साहब का माने जन्म ही हुआा था । यह उन्हों का काम था कि वे हिन्दी गद्य में एक नई जीवनी शक्ति का सश्चार करके उसके क्षेखक्तां के पथदशेक श्रौ र उसके भण्डार को मूति के प्रधान कारण हुए। दिन्दो-गद्य के जन्मदाता ता लस्लु- लालजां हुए, परन्तु यह बावू हरिश्वन्द्र का ही काथ्य था कि उन्हीं ने इसको नवोन रूप से अल्लड्भडत कर इस भाषा का गौरव बढ़ाया । इसी कारण से श्राज दिन दिन्दौ के पठित समाज में वे सवेमान्य ओर सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। उनके अनेक गुणों से सन्तुष्ट हा सन्‌ १८८९ इ० में पण्डित रामशङकर व्यास के प्रस्ताव पर हिन्दी-समा- चारपत्रों के सम्पादकों ने उन्हें 'भारतेन्दु' की पदवी दी थी । बाबू साहब क्रा धमं वेष्णब था । वे धम में पक्के थे, पर आड- म्बर से दूर भागते थे । उनके सिद्धान्त में परम घम भगवत्प्रेम था । वे मत वा धम को केवल्ल विश्वासमूलक मानते थे, प्रमाणमूलङ नहीं । सत्य, अहिंसा, दया, शीज्ष, नम्रता आदि चारित्र्य को भी वे धमं मानते घे । वे प्राय: कहा करते थे, कि यदि मेरे पास बहुत सा धन होता ते मैं चार काम करता--( १ ) श्रोठाकुरजी को बगोचे में पधरा कर धूम धाम से षट्‌ऋतु का मनारथ करता; ( २) ईग- लेंड, फ्रांस और अमेरिका जाता; ( ३ ) अपने उद्योग से एक शुद्ध हिन्दो की युनिवर्सिटी खापित करता और (४) एक शिल्पकला का पशश्चिमात्तर प्रदेश में कालेज बनाता | परन्तु इन इच्छाश्रों में से वे एक भी पूरी न कर सके | उनके आमाद की वस्तुएं राग, वाद्य, रसिकसमागम्त, चित्र, देश देश ओर काल काल की विचित्र वस्तुएं




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