उड़न तश्तरियां | Udan Tastariyan

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Udan Tastariyan by विद्यासागर -Vidyasagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२, लघु मानव और उड़न-तश्तरियाँ आ्राधुनिक युग के आकाश में जितने खतरे हैं, उतने पहले कभी नहीं थे । पिछली शताब्दी में, रात के समय, जगह-जगह जाकर सड़कों की वत्ती जलाने वाला, जिन चीजों को उपेक्षा से देखकर चला जाता |, ग्रव वही चीजें, मनुष्य की उस पीढ़ी को परेशानी में डाले हुए हैं जो हवाई हमले की सूचना देने वाले भोंपू के चीत्कारों भौर इन अशुभ आ्राशंकाओों के बीच पले हैं कि न मालूम किस क्षण उनके मकानों कौ छते महरा कर टट पड़ें । यहाँ तक कि दिल में भी, हवा में तिरते हुए डैंडेलियन (एक प्रकार का जंगली पौधा) के बीजों से टकरा कर आती हुई रोशनी या तेज चमकती धूप में, जाले के पतले तारों पर चढ़ती हुई मकड़ी को देखकर कोई भी ऐसा नौसिखिया, जो ग्राकाश की वस्तुप्रों की दूरी श्रौर प्रकृति का श्रनुमान लगा सकने का ब्रभ्यस्त नहीं दैः उत्तेजित हो क्‌ सवालों की भड़ी लगा सकता है। चकि आजकल हम, श्रन्तरिक्ष में उड़ने वाले राकेटों की बातें करते हैं, उसके बारे में लेख लिखते हैं और तरह-तरह की कल्पनाएँ करते हैं इसलिए इसमें कुछ श्राइचर्य नहीं है कि इत विचारों से पर्दे का दूसरा रूप भी सामने ग्रा जाय कि राकेट या उसी किस्म की कोई और वस्तु हमारी पृथ्वी में, सम्भवतः कहीं 'बाहर' से भ्राई हो । मैं भी यह स्वीकार करता हूँ कि भ्रपनी युवावस्था में मैंने इस प्रकार की घटना घटित होने की वड शाशा से प्रतीक्षा की थी । पृथ्वी से बाहर, अन्धकार से परे जीवन के पाये जाने का विश्वास इतना गहरा है कि लोग यह सोचते हैं कि यदि इस प्रकार के प्राणी हमसे अधिक प्रगतिशील हतो ( १३ )




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