श्रीभागवत -सुधा-सागर | Shri Bhagawat - Sudaha - Sagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ श्रीमद्भागवते | अ० ! ----~------- सोचकर ) उस समय देवताओकी हँसी उडा दी ॥१ ६॥ उन्हें भक्तियून्य ( कथाका अनविकारी ) जानकर कथा- मृतका दान नहीं किया । इस प्रकार यह श्रीमद्वागवतकी कथा देवताओंको मी दुर्खम है ॥ १७॥ पूर्वकालमें श्रीमद्भागवतके श्रवणसे ही राजा परीक्षित्‌- की मुक्ति देखकर ब्रह्माजीको भी बड़ा आश्चर्य हुआ था । उन्होंने सत्योकर्मे तराजू बाँधकर सत्र साधनोकों तौछा ॥ १८ ॥ अन्य समी साधन तैम हल्के पड़ गये, अपने महत्त्वके कारण भागवत ही सबसे भारी रहा | यह देखकर सभी ऋषियोंकोी बड़ा विस्मय हुआ ॥१९॥ उन्होंने कलियुगमे इस भगवद्गप भागवतशाल्रकों ही पढने-सुननेसे तत्काल मोक्ष ठेनेवाख निश्चय किया |२०॥ सप्ताहविधिसे श्रवण करनेपर यह निश्चय भक्ति प्रदान करता है | पृरकालमें इसे दयापरायण सनकादिने देवर्पि नारदकों सुनाया था ॥२१॥ यद्यपि देवर्षिने पहले ब्रह्मा- जके मुग्वसे उमे श्रवण कर्‌ छया था, तथापि सप्ताहश्रवण- की विधि तो उन्हें सनकादिने ही बतायी थी || २२॥ शौनकजीने पूछा--सासारिक प्रपश्चसे मुक्त एवं विचरणगील नारजीका सनकादिके साथ सयोग करटौ हुआ ओर विपधरि-विधानके श्रवणे उनकी प्रीति कैसे ६६८॥२३॥ सूतजीने कद्दा--अव में तुम्हें वह भक्तिपृणं कथानक सुनाना हैं. जो श्रीशुकदेवजीने मुझे अपना अनन्य शिष्य जानझूर एकान्तर्मे सुनाया था || २० || एक दिन [दा पुरम वे चारो निर्म ऋषि ससझ़के लिये শে । वय उन्होने माग्दर्जी्ते देवा | २५५॥। ব্যলবাটিল पूढा-तदन्‌ ! आपका आपका सुख उठास সা জট 0 দন ,৬. पय चिन्नः द নু इननी र ह, र्हा 5 नध [चन्न्नुग क्म ह्‌ ˆ इनन = हा ऋ = न नवस, ~ - + न ~~ उर ৮ টক কাপর = दनः कल जा गा € कोर आपका आगमन बोलने क्न शेव्य भ ~~ ¦ ड त) ~+ नग्नः म ^ +~; ६ { ~~ है इस रमय = आप ण्ट पष्ठ ০৫০] र~ क्वं কিক 5 ভিজ र = ক লু ~ भर ध ~~ श ु + >^ ও (4 ल्ग गर न হানি রি [क ह = अ को द = न~ ++ ह = र~ £ 3 = আশা টি শী নু #३ , ७ + শিক্ষা ৬ ओर + न ৪ ৯৬ न>. = दर ज्ञानी লট र =-= ~ হা ই भ~ ~ | টিটি হাতির बताइए [| 3 5 || পু সি শু ৮৯ किक এ আজ ক: ৯ উস পাইন লহকুল न इष = ~~त লিভ सम घए पर्चा < 4 [न ~~ ~~~ (1 ज न्‌ च ४ [ पर শি ও ~. হা পি ২ পি চর টি -आदि कई तीर्थेमि मै उधर-उधर विचरता रहा; किंतु मुझे कहीं भी मनको संतोष देनेवाली शान्ति नहीं मिली | इस समय अधमके सहायक कल्युगने सारी पृथ्वीको पीडित कर रक्‍्खा हैं ॥ २८-३० ॥ अब यहाँ सत्य, तप, शौच (वाहर-भीतरकी पवित्रता), दया, दान आदि कुछ भी नहीं है। बेचारे जीव केवल अपना पेट पालनेमे लगे हुए हैं, वे असत्यभाषी, आल्सी, मन्दबुद्धि, भाग्यहीन, उपद्गवग्रस्त हो गये हैं | जो साघु-सत कहे जाते हैं, वे पूरे पाखण्डी हो गये हैं; देखनेमें तो बे विरक्त हैं, किंतु त्री-वन आदि प्तभीका परिग्रह करते हैं । घरोमें स्लियोंका राज्य है, साले सलाहकार बने हुए हैं, लोभसे छोग कन्याविक्रय करते हैं और त्ी-पुरुषोंमि कलह मचा रहता है || ३१-३३ ॥ महात्माओंके आश्रम, तीर्थं ओर नदिर्योपर यवनो (विधरमिर्योका) अधिकार हो गया है, उन दुशेने बहुत-से देवालय भी नष्ट कर दिये हैं || ३४ || इस समय यहाँ न कोई योगी है न सिद्ध है, न ज्ञानी है और न सत्कर्म करनेवाला ही है | सारे साथन इस समय कलिरूप दावानलसे जलकर भस्म हो गये हैं ॥ ३७ ॥ इस कलियुगर्मे सभी देशवासी वाजारोंमें अन बेचने छने हैं, ब्राह्मणछोग पैसा लेकर वेद पढ़ाते हैं और स्त्रियों वेश्यावृत्तिसे निर्चाह करने लगी हैं || ३६ ॥ इस तरह कडियुगक्रें दोष देखता और पृथ्वीपर विचरता हुआ में यम्ुनाजीके तटपर पढ़ूँचा, जहाँ भगवान्‌ श्रीकृष्णकी अनेकों छीछाएँ हो चुकी हैं ॥१७॥ मुनिवरों | सुनिये, वहाँ मैंने एक बड़ा आर्यं देग्वा | वहं एक युवती री खिन्न मनसे बठी थी || ३८ ॥ उसके पास दो बृद्ध पुरुष अचेत अवम्थार्म पड़े जोर-जोरसे साँस ले रहे थे | वह तझणी उनकी सेत्रा নী कनी उन्हें चेन करनेक्ता ग्रस्त करती और कमी उनके सनी লাল লেক শা ३८ | वद अपने अरीक रक्षक परमात्मायों दसों विशाओंमें देख गही थी। उसके चारो नर नकां चरि ठय प्या ष्ट उह्ठी थीं और নাও समदाती जाती थीं || ४० ॥ दूरसे यह मव अल कै च जअ =---~~ = + प म दत वता उम वान्‌ चट নল | চপ ग्न्य সা ~ = ग्न्य হর --- ~~ त गुव न्ह मला द वदः न्य




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