श्रीभागवत -सुधा-सागर | Shri Bhagawat - Sudaha - Sagar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
79 MB
कुल पष्ठ :
1061
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ श्रीमद्भागवते
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सोचकर ) उस समय देवताओकी हँसी उडा दी ॥१ ६॥
उन्हें भक्तियून्य ( कथाका अनविकारी ) जानकर कथा-
मृतका दान नहीं किया । इस प्रकार यह श्रीमद्वागवतकी
कथा देवताओंको मी दुर्खम है ॥ १७॥
पूर्वकालमें श्रीमद्भागवतके श्रवणसे ही राजा परीक्षित्-
की मुक्ति देखकर ब्रह्माजीको भी बड़ा आश्चर्य हुआ था ।
उन्होंने सत्योकर्मे तराजू बाँधकर सत्र साधनोकों
तौछा ॥ १८ ॥ अन्य समी साधन तैम हल्के पड़
गये, अपने महत्त्वके कारण भागवत ही सबसे भारी रहा |
यह देखकर सभी ऋषियोंकोी बड़ा विस्मय हुआ ॥१९॥
उन्होंने कलियुगमे इस भगवद्गप भागवतशाल्रकों ही
पढने-सुननेसे तत्काल मोक्ष ठेनेवाख निश्चय किया |२०॥
सप्ताहविधिसे श्रवण करनेपर यह निश्चय भक्ति प्रदान
करता है | पृरकालमें इसे दयापरायण सनकादिने देवर्पि
नारदकों सुनाया था ॥२१॥ यद्यपि देवर्षिने पहले ब्रह्मा-
जके मुग्वसे उमे श्रवण कर् छया था, तथापि सप्ताहश्रवण-
की विधि तो उन्हें सनकादिने ही बतायी थी || २२॥
शौनकजीने पूछा--सासारिक प्रपश्चसे मुक्त एवं
विचरणगील नारजीका सनकादिके साथ सयोग करटौ
हुआ ओर विपधरि-विधानके श्रवणे उनकी प्रीति कैसे
६६८॥२३॥
सूतजीने कद्दा--अव में तुम्हें वह भक्तिपृणं कथानक
सुनाना हैं. जो श्रीशुकदेवजीने मुझे अपना अनन्य
शिष्य जानझूर एकान्तर्मे सुनाया था || २० || एक दिन
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। वय उन्होने माग्दर्जी्ते देवा | २५५॥।
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-आदि कई तीर्थेमि मै उधर-उधर विचरता रहा; किंतु
मुझे कहीं भी मनको संतोष देनेवाली शान्ति नहीं मिली |
इस समय अधमके सहायक कल्युगने सारी
पृथ्वीको पीडित कर रक््खा हैं ॥ २८-३० ॥
अब यहाँ सत्य, तप, शौच (वाहर-भीतरकी पवित्रता), दया,
दान आदि कुछ भी नहीं है। बेचारे जीव केवल अपना पेट
पालनेमे लगे हुए हैं, वे असत्यभाषी, आल्सी, मन्दबुद्धि,
भाग्यहीन, उपद्गवग्रस्त हो गये हैं | जो साघु-सत कहे
जाते हैं, वे पूरे पाखण्डी हो गये हैं; देखनेमें तो बे विरक्त
हैं, किंतु त्री-वन आदि प्तभीका परिग्रह करते हैं ।
घरोमें स्लियोंका राज्य है, साले सलाहकार बने हुए हैं,
लोभसे छोग कन्याविक्रय करते हैं और त्ी-पुरुषोंमि कलह मचा
रहता है || ३१-३३ ॥ महात्माओंके आश्रम, तीर्थं ओर
नदिर्योपर यवनो (विधरमिर्योका) अधिकार हो गया है, उन
दुशेने बहुत-से देवालय भी नष्ट कर दिये हैं || ३४ || इस
समय यहाँ न कोई योगी है न सिद्ध है, न ज्ञानी है
और न सत्कर्म करनेवाला ही है | सारे साथन इस
समय कलिरूप दावानलसे जलकर भस्म हो गये हैं
॥ ३७ ॥ इस कलियुगर्मे सभी देशवासी वाजारोंमें अन
बेचने छने हैं, ब्राह्मणछोग पैसा लेकर वेद पढ़ाते हैं और
स्त्रियों वेश्यावृत्तिसे निर्चाह करने लगी हैं || ३६ ॥
इस तरह कडियुगक्रें दोष देखता और पृथ्वीपर
विचरता हुआ में यम्ुनाजीके तटपर पढ़ूँचा, जहाँ
भगवान् श्रीकृष्णकी अनेकों छीछाएँ हो चुकी हैं ॥१७॥
मुनिवरों | सुनिये, वहाँ मैंने एक बड़ा आर्यं देग्वा | वहं
एक युवती री खिन्न मनसे बठी थी || ३८ ॥ उसके
पास दो बृद्ध पुरुष अचेत अवम्थार्म पड़े जोर-जोरसे
साँस ले रहे थे | वह तझणी उनकी सेत्रा নী
कनी उन्हें चेन करनेक्ता ग्रस्त करती और कमी उनके
सनी লাল লেক শা ३८ | वद अपने अरीक रक्षक
परमात्मायों दसों विशाओंमें देख गही थी। उसके चारो
नर नकां चरि ठय प्या ष्ट उह्ठी थीं और নাও
समदाती जाती थीं || ४० ॥ दूरसे यह मव
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